पास आ गया है बेहद
जब से चुनाव फिर संसद का
राजनीति की चिमनी जागी
धुँआँ उठा है नफ़रत का
आहिस्ता-आहिस्ता
सारी हवा हो रही है जहरीली
काले-काले धब्बों ने
ढँक ली है नभ की चादर नीली
वोटर बेचारा
मोहरा भर है
पूँजी की हसरत का
धर्म-जाति का शीतल जल अब
धीरे-धीरे फिर गरमाया
बढ़ती रही अगन तो
जल जायेगी मजलूमों की काया
जनता को
अनुमान नहीं है
आने वाली आफ़त का
भगवा हो या हरे रंग का
विष तो आख़िर विष होता है
नागनाथ या साँपनाथ का
मानव ही आमिष होता है
देश अखाड़ा
घर-घर कुश्ती
देख तमाशा ताक़त का
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
गुरुवार, 3 अगस्त 2023
गुरुवार, 27 अप्रैल 2023
नवगीत: नफ़रत का पौधा
महावृक्ष बनकर लहराता
नफ़रत का पौधा
पत्ते हरे फूल केसरिया
लाल-लाल फल आते
प्यास लहू की लगती जिनको
आकर यहाँ बुझाते
सबसे ज्यादा फल खाने की
चले प्रतिस्पर्द्धा
किसमें हिम्मत इसे काट दे
उठा प्रेम की आरी
इसकी रक्षा में तत्पर है
वानर सेना सारी
कैसे-कैसे काम कराये
निरी अंधश्रद्धा
पंखों वाले बीज हुये हैं
उड़-उड़ कर जायेंगे
भारत के कोने-कोने में
नफ़रत फैलायेंगे
लोग लड़ेंगे
लोग मरेंगे
रोयेगी वसुधा
रोपा इसको राजनीति ने
लेकिन खाद और पानी
वो देते जिनके घर बैठी
रक्तकमल पर लक्ष्मी
जनता मूरख समझ न पाये
यह गोरखधंधा
नफ़रत का पौधा
पत्ते हरे फूल केसरिया
लाल-लाल फल आते
प्यास लहू की लगती जिनको
आकर यहाँ बुझाते
सबसे ज्यादा फल खाने की
चले प्रतिस्पर्द्धा
किसमें हिम्मत इसे काट दे
उठा प्रेम की आरी
इसकी रक्षा में तत्पर है
वानर सेना सारी
कैसे-कैसे काम कराये
निरी अंधश्रद्धा
पंखों वाले बीज हुये हैं
उड़-उड़ कर जायेंगे
भारत के कोने-कोने में
नफ़रत फैलायेंगे
लोग लड़ेंगे
लोग मरेंगे
रोयेगी वसुधा
रोपा इसको राजनीति ने
लेकिन खाद और पानी
वो देते जिनके घर बैठी
रक्तकमल पर लक्ष्मी
जनता मूरख समझ न पाये
यह गोरखधंधा
रविवार, 26 मार्च 2023
ग़ज़ल: कौन बताए बेचारी को पगली तू ख़तरे में है
22 22 22 22 22 22 22 2
कौन बताए बेचारी को पगली तू ख़तरे में है
मालिक निकला चोर उचक्का दुनिया ने मुँह पर थूका
नौकर बोल रहा मेरा सोना बाबू ख़तरे में है
बेच दिया उपवन माली ने कब का अब तो ये लगता
बंधन में हैं फूल और उनकी ख़ुश्बू ख़तरे में है
झेल रहे इस कदर प्रदूषण मिट्टी, पानी और हवा
खतरे में हैं सारे मुस्लिम हर हिन्दू खतरे में है
इनके बिन सारी दुनिया सचमुच नीरस हो जाएगी
भाईचारा, प्यार, वफ़ा इनका जादू ख़तरे में है
बोझ उठाकर पूंजी सत्ता का बेचारा वृद्ध हुआ
मारा जाएगा `सज्जन’ अब तो टट्टू ख़तरे में है
बुधवार, 1 मार्च 2023
बुधवार, 4 जनवरी 2023
नवगीत: जीवन की पतंग
प्यार किसी का बनता जब-जब
लंबी पक्की डोर
जीवन की पतंग छू लेती
तब-तब नभ का छोर
यूँ तो शत्रु बहुत हैं नभ में
इसे काटने को
तिस पर तेज हवा आती है
ध्यान बाँटने को
ऐसे पल में प्रीत जरा सा
देती है झकझोर
डोर कटी तो
अनियंत्रित हो जाने कहाँ गिरेगी
मिल जाएगी कहीं धूल में
या तरु पर लटकेगी
प्रेम डोर बिन
ये बेचारी
है बेहद कमजोर
बने संतुलन, रहे हौसला
तो सब कुछ है मुमकिन
कभी ढील देनी पड़ती तो
सख्ती के भी कुछ दिन
उड़ती बिना प्रयत्न कभी तो
लेती कभी हिलोर
मंगलवार, 20 दिसंबर 2022
नवगीत: मैना बैठी सोच रही है पिंजरे के दिल में
मैना बैठी सोच रही है
पिंजरे के दिल में
मिल जाता है दाना पानी
जीवन जीने में आसानी
सुनती सबकी बात सयानी
फिर भी होती है हैरानी
मुझसे ज्यादा ख़ुश तो
चूहा है अपने बिल में
जब तक बोले मीठा-मीठा
सबको लगती है ये सीता
जैसे ही कहती कुछ अपना
सब कहते बस चुप ही रहना
अच्छी चिड़िया नहीं बोलती
ऐसे महफ़िल में
बहुत सलाखों से टकराई
पर पिंजरे से निकल न पाई
चला न कुछ भी जादू टोना
टूट गया है पंख सलोना
जाने किसने
पिंजरे के दिल में
मिल जाता है दाना पानी
जीवन जीने में आसानी
सुनती सबकी बात सयानी
फिर भी होती है हैरानी
मुझसे ज्यादा ख़ुश तो
चूहा है अपने बिल में
जब तक बोले मीठा-मीठा
सबको लगती है ये सीता
जैसे ही कहती कुछ अपना
सब कहते बस चुप ही रहना
अच्छी चिड़िया नहीं बोलती
ऐसे महफ़िल में
बहुत सलाखों से टकराई
पर पिंजरे से निकल न पाई
चला न कुछ भी जादू टोना
टूट गया है पंख सलोना
जाने किसने
इतनी हिम्मत
भर दी बुजदिल में
सोमवार, 14 नवंबर 2022
ग़ज़ल: या बिन लादेन होता है या आसाराम होता है
बह्र : 1222 1222 1222 1222
या बिन लादेन होता है या आसाराम होता है
सभी धर्मों का आख़िर में यही अंजाम होता है
बचा लो संस्कृति अपनी बचा लो सभ्यता अपनी
सदा आतंकवादी का यही पैगाम होता है
है ये दुनिया उसी की झूट जो बोले सलीके से
यहाँ सच बोलने वाला सदा नाकाम होता है
जहाँ जो धर्म बहुसंख्यक वहीं क्यों है वो ख़तरे में
यहूदी, बौद्ध, हिन्दू तो कहीं इस्लाम होता है
जिसे पकड़ा गया हो बस वही बदनाम है ‘सज्जन’
वगरना कौन धर्मात्मा यहाँ निष्काम होता है
या बिन लादेन होता है या आसाराम होता है
सभी धर्मों का आख़िर में यही अंजाम होता है
बचा लो संस्कृति अपनी बचा लो सभ्यता अपनी
सदा आतंकवादी का यही पैगाम होता है
है ये दुनिया उसी की झूट जो बोले सलीके से
यहाँ सच बोलने वाला सदा नाकाम होता है
जहाँ जो धर्म बहुसंख्यक वहीं क्यों है वो ख़तरे में
यहूदी, बौद्ध, हिन्दू तो कहीं इस्लाम होता है
जिसे पकड़ा गया हो बस वही बदनाम है ‘सज्जन’
वगरना कौन धर्मात्मा यहाँ निष्काम होता है
रविवार, 4 सितंबर 2022
घटना: प्रिय लिखक से मुलाकात
आज आदरणीय उदय प्रकाश जी से उनके निवास पर मिलना हुआ। उन्हें हाल ही में टाइफाइड हुआ था। अभी स्वास्थ्य लाभ कर रह हैं। चलने फिरने में अभी परेशानी हो रही है। वजन 13 किलो कम हो गया है। मैंने अपना पहला उपन्यास जिन चार लोगों को समर्पित किया है उनमें सबसे पहले उदय प्रकाश जी हैं। आज उपन्यास की एक प्रति अपने प्रिय लेखक को भेंट की।
चित्र में पीछे दीवार पर घड़ी, बुद्ध और लिखा हुआ संदेश "I will survive" उनकी अदम्य जिजीविषा के साथ-साथ इस बात को अभिव्यक्त कर रहे हैं कि सत्य और मानवता हमेशा बचे रहेंगे।
चित्र में पीछे दीवार पर घड़ी, बुद्ध और लिखा हुआ संदेश "I will survive" उनकी अदम्य जिजीविषा के साथ-साथ इस बात को अभिव्यक्त कर रहे हैं कि सत्य और मानवता हमेशा बचे रहेंगे।
https://www.amazon.in/Likhe-Hain-Khat-Tumhein-Hindi-ebook/dp/B09YRT2698/ref=sr_1_1?qid=1662300357&refinements=p_27%3ASajjan+Dharmendra&s=books&sr=1-1
https://www.flipkart.com/likhe-hain-khat-tumhein/p/itmf6f30ebd6ced6
https://www.flipkart.com/likhe-hain-khat-tumhein/p/itmf6f30ebd6ced6
शनिवार, 3 सितंबर 2022
ग़ज़ल: कब तक झुट्टे को पूजोगे
22 22 22 22 22 22
जब तक पैसे को पूजोगे
चोर लुटेरे को पूजोगे
जल्दी सोकर सुबह उठोगे
तभी सवेरे को पूजोगे
खोलो अपनी आँखें वरना
सदा अँधेरे को पूजोगे
नहीं पढ़ोगे वीर भगत को
तुम बस पुतले को पूजोगे
ईश्वर जाने कब से मृत है
कब तक मुर्दे को पूजोगे
अब तो जान चुके हो सच तुम
कब तक झुट्टे को पूजोगे
जब तक पैसे को पूजोगे
चोर लुटेरे को पूजोगे
जल्दी सोकर सुबह उठोगे
तभी सवेरे को पूजोगे
खोलो अपनी आँखें वरना
सदा अँधेरे को पूजोगे
नहीं पढ़ोगे वीर भगत को
तुम बस पुतले को पूजोगे
ईश्वर जाने कब से मृत है
कब तक मुर्दे को पूजोगे
अब तो जान चुके हो सच तुम
कब तक झुट्टे को पूजोगे
मंगलवार, 19 जुलाई 2022
ग़ज़ल: एक दिन आँसू पीने पर भी टैक्स लगेगा
घुटकर मरने जीने पर भी टैक्स लगेगा
एक दिन आँसू पीने पर भी टैक्स लगेगा
नदी साफ तो कभी न होगी लेकिन एक दिन
दर्या, घाट, सफ़ीने पर भी टैक्स लगेगा
दंगा, नफ़रत, हत्या कर से मुक्त रहेंगे
लेकिन इश्क़ कमीने पर भी टैक्स लगेगा
पानी, धूप, हवा, मिट्टी, अम्बर तो छोड़ो
एक दिन चौड़े सीने पर भी टैक्स लगेगा
भारी हो जायेगा खाना रोटी-चटनी
धनिया और पुदीने पर भी टैक्स लगेगा
छोड़ो खाद, बीज की बातें एक दिन ‘सज्जन’
बहते लहू, पसीने पर भी टैक्स लगेगा
एक दिन आँसू पीने पर भी टैक्स लगेगा
नदी साफ तो कभी न होगी लेकिन एक दिन
दर्या, घाट, सफ़ीने पर भी टैक्स लगेगा
दंगा, नफ़रत, हत्या कर से मुक्त रहेंगे
लेकिन इश्क़ कमीने पर भी टैक्स लगेगा
पानी, धूप, हवा, मिट्टी, अम्बर तो छोड़ो
एक दिन चौड़े सीने पर भी टैक्स लगेगा
भारी हो जायेगा खाना रोटी-चटनी
धनिया और पुदीने पर भी टैक्स लगेगा
छोड़ो खाद, बीज की बातें एक दिन ‘सज्जन’
बहते लहू, पसीने पर भी टैक्स लगेगा
सदस्यता लें
संदेश (Atom)