यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
बुधवार, 1 मार्च 2023
बुधवार, 4 जनवरी 2023
नवगीत: जीवन की पतंग
प्यार किसी का बनता जब-जब
लंबी पक्की डोर
जीवन की पतंग छू लेती
तब-तब नभ का छोर
यूँ तो शत्रु बहुत हैं नभ में
इसे काटने को
तिस पर तेज हवा आती है
ध्यान बाँटने को
ऐसे पल में प्रीत जरा सा
देती है झकझोर
डोर कटी तो
अनियंत्रित हो जाने कहाँ गिरेगी
मिल जाएगी कहीं धूल में
या तरु पर लटकेगी
प्रेम डोर बिन
ये बेचारी
है बेहद कमजोर
बने संतुलन, रहे हौसला
तो सब कुछ है मुमकिन
कभी ढील देनी पड़ती तो
सख्ती के भी कुछ दिन
उड़ती बिना प्रयत्न कभी तो
लेती कभी हिलोर
मंगलवार, 20 दिसंबर 2022
नवगीत: मैना बैठी सोच रही है पिंजरे के दिल में
पिंजरे के दिल में
मिल जाता है दाना पानी
जीवन जीने में आसानी
सुनती सबकी बात सयानी
फिर भी होती है हैरानी
मुझसे ज्यादा ख़ुश तो
चूहा है अपने बिल में
जब तक बोले मीठा-मीठा
सबको लगती है ये सीता
जैसे ही कहती कुछ अपना
सब कहते बस चुप ही रहना
अच्छी चिड़िया नहीं बोलती
ऐसे महफ़िल में
बहुत सलाखों से टकराई
पर पिंजरे से निकल न पाई
चला न कुछ भी जादू टोना
टूट गया है पंख सलोना
जाने किसने
सोमवार, 14 नवंबर 2022
ग़ज़ल: या बिन लादेन होता है या आसाराम होता है
या बिन लादेन होता है या आसाराम होता है
सभी धर्मों का आख़िर में यही अंजाम होता है
बचा लो संस्कृति अपनी बचा लो सभ्यता अपनी
सदा आतंकवादी का यही पैगाम होता है
है ये दुनिया उसी की झूट जो बोले सलीके से
यहाँ सच बोलने वाला सदा नाकाम होता है
जहाँ जो धर्म बहुसंख्यक वहीं क्यों है वो ख़तरे में
यहूदी, बौद्ध, हिन्दू तो कहीं इस्लाम होता है
जिसे पकड़ा गया हो बस वही बदनाम है ‘सज्जन’
वगरना कौन धर्मात्मा यहाँ निष्काम होता है
रविवार, 4 सितंबर 2022
घटना: प्रिय लिखक से मुलाकात
चित्र में पीछे दीवार पर घड़ी, बुद्ध और लिखा हुआ संदेश "I will survive" उनकी अदम्य जिजीविषा के साथ-साथ इस बात को अभिव्यक्त कर रहे हैं कि सत्य और मानवता हमेशा बचे रहेंगे।
https://www.flipkart.com/likhe-hain-khat-tumhein/p/itmf6f30ebd6ced6
शनिवार, 3 सितंबर 2022
ग़ज़ल: कब तक झुट्टे को पूजोगे
जब तक पैसे को पूजोगे
चोर लुटेरे को पूजोगे
जल्दी सोकर सुबह उठोगे
तभी सवेरे को पूजोगे
खोलो अपनी आँखें वरना
सदा अँधेरे को पूजोगे
नहीं पढ़ोगे वीर भगत को
तुम बस पुतले को पूजोगे
ईश्वर जाने कब से मृत है
कब तक मुर्दे को पूजोगे
अब तो जान चुके हो सच तुम
कब तक झुट्टे को पूजोगे
मंगलवार, 19 जुलाई 2022
ग़ज़ल: एक दिन आँसू पीने पर भी टैक्स लगेगा
एक दिन आँसू पीने पर भी टैक्स लगेगा
नदी साफ तो कभी न होगी लेकिन एक दिन
दर्या, घाट, सफ़ीने पर भी टैक्स लगेगा
दंगा, नफ़रत, हत्या कर से मुक्त रहेंगे
लेकिन इश्क़ कमीने पर भी टैक्स लगेगा
पानी, धूप, हवा, मिट्टी, अम्बर तो छोड़ो
एक दिन चौड़े सीने पर भी टैक्स लगेगा
भारी हो जायेगा खाना रोटी-चटनी
धनिया और पुदीने पर भी टैक्स लगेगा
छोड़ो खाद, बीज की बातें एक दिन ‘सज्जन’
बहते लहू, पसीने पर भी टैक्स लगेगा
शनिवार, 30 अप्रैल 2022
गुरुवार, 21 अप्रैल 2022
रविवार, 17 अप्रैल 2022
गीत चतुर्वेदी का उपन्यास ‘उस पार’ : एक गद्यात्मक महाकाव्य
गीत चतुर्वेदी का उपन्यास ‘उस पार’ असल में मिथकों और प्रतीकों के माध्यम से कही गयी इस देश की कहानी है। उपन्यास में वजाल और सिमर्गल नाम के दो साधू दरअसल दो विचारधाराओंं के रूपक हैं। समझने के लिये इन्हें सरदार पटेल और जवाहर लाल नेहरू की विचारधारा भी समझ सकते हैं। यह सिमर्गल और वजाल के चरित्र चित्रण से भी स्पष्ट है। ये दो प्रकार की विचारधाराएँ इस देश में हजारों वर्षों से संघर्षरत किन्तु सहजीवी हैं। इनका जन्म एक ही विचारधारा से हुआ है। ये दो आत्माएँ एक ही मूल आत्मा के दो टुकड़े हैं जिसे हम भारत की संस्कृति कह सकते हैं।
इस देश के हजारों वर्षों के इतिहास में वजाल हमेशा सिमर्गल पर भारी रहा है इसलिये अंतिम प्रतियोगिता (जिसे हम आजादी के संघर्ष का रूपक मानें) में सभी को यकीन था कि वजाल ही विजयी होकर अंततः वज्रगुरु का उत्तराधिकारी बनेगा। यहाँ वज्रगुरू को सत्य एवं अहिंसा की विचारधारा का रूपक माना जा सकता है। यहाँ लेखक ने शिवरस का जिक्र किया है। शिवरस देवों और दैत्यों की रस्साकसी से निकले हलाहल को सहन करने के बाद शिवकंठ से निकला अमृत है। विचारधारा भी तो यही होती है। अपने अंदर मौजूद देव और दानव के बीच हुई रस्साकसी से निकले विष को सहन कर लेने के बाद निकली अमृत धारा ही तो विचारधारा होती है। वज्रगुरु ने शिवरस पिया हुआ था जिसके कारण वो परमसिद्ध और दीर्घजीवी थे। उनकी आत्मा हजारों हजार वर्ष तक अपनी स्मृतियाँ अक्षुण्ण रख सकती थी। शरीर खत्म हो जाता है पर विचारधारा खत्म होने में हजारों हजार वर्ष लगते हैं। इस बात से भी स्पष्ट हो जाता है कि वजाल, सिमर्गल और वज्रगुरु व्यक्ति न होकर प्रतीक मात्र हैं।
पर होनी को तो कुछ और ही मंजूर था। अंतिम प्रतियोगिता के बाद वज्रगुरु ने सिमर्गल को विजेता घोषित कर दिया। वो अपने ज्ञान और विद्या के बावजूद वजाल के साथ हुई बेईमानी को नहीं भाँप सके या फिर शायद सिमर्गल के स्वभाव के कारण भीतर ही भीतर वो सिमर्गल को अपना उत्तराधिकारी चुनना चाहते थे इसलिये उनके अवचेतन ने उन्हें सच देखने से रोक दिया।
इसके बाद वज्रगुरु की हत्या और उसके बाद वजाल और सिमर्गल के संघर्ष से तो सभी परिचित ही हैं। न वजाल सिमर्गल को समाप्त कर सकता है न सिमर्गल वजाल को क्योंकि दोनों एक ही आत्मा के दो टुकड़े हैं। पर उनके संघर्ष में वजाल की आत्मा का एक टुकड़ा कटकर अपना स्वतंत्र अस्तित्व कायम कर लेता है। ये टुकड़ा अर्थात मंदिरा इस देश की गंगा-जमुनी तहजीब यानी प्रेम सहिष्णुता और भाईचारे का प्रतीक है। इस कथा का नायक अर्थात मंदिरा का प्रेमी मनोहर इस देश के आम आदमी का प्रतीक है। वजाल और सिमर्गल के संघर्ष में पिस रही मंदिरा की आत्मा को मनोहर का प्रेम और मनोहर की स्मृतियाँ ही बचा सकती हैं।
वर्तमान में वजाल ने मंदिरा की आत्मा का अपहरण कर लिया है और उसे एक केसरिया झंडे में कैद कर दिया है। यहाँ आकर रूपक बहुत स्पष्ट हो जाता है। वजाल या सिमर्गल जिसके साथ भी मंदिरा की आत्मा जायेगी वही विजयी होगा परन्तु मंदिरा की आत्मा मनोहर के साथ अर्थात इस देश के आम आदमी के साथ ही रहना चाहती है। उपन्यास में मंदिरा की आत्मा को छुड़ाने के लिये मनोहर आधुनिक तकनीक, संगीत, कला, ज्योतिषि, योग, तंत्र इन सबके विशेषज्ञों के की सहायता से एक तोड़ू दस्ता बनाता है।
मनोहर को रोकने के लिए वजाल तरह-तरह के भ्रम फैलाता है। भाँति-भाँति के झूठ बोलकर मनोहर को मंदिरा के विरुद्ध कर देता है। अब देखना ये है कि आम आदमी अपने तोड़ू दस्ते की मदद से इस देश की गंगा-जमुनी तहजीब यानी प्रेम, सहिष्णुता और भाईचारे को वजाल की कैद से मुक्त करा पायेगा या नहीं और मंदिरा की आत्मा के साथ रहने के लिए अपना शरीर अर्थात झूठा अभिमान और श्रेष्ठताबोध त्याग पायेगा या नहीं। बाकी वजाल और सिमर्गल का संघर्ष तो संभवतः सृष्टि के अंत तक जारी रहेगा।
इस तरह देखा जाय तो ‘उस पार’ प्रतीकों के माध्यम से कही गई एक ख़ूबसूरत कहानी है जिसमें मिथकों और प्रतीकों के माध्यम से कविता के तत्वों का भी समावेश है इसलिये इसे एक गद्यात्मक महाकाव्य भी कहा जा सकता है।
इस उपन्यास के अंत तक आते-आते मुझे मार्केज याद आ गये। जादुई यथार्थ, मिथक और विज्ञान इन सबके संगम से रचा उनका उपन्यास ‘एकांत के सौ वर्ष’ याद आ गया। मार्केज ने अपने उपन्यास में जादुई यथार्थ, मिथक और विज्ञान के संगम से लैटिन अमेरिका के उपनिवेशीकरण, विनिवेशीकरण और नव-उपनिवेशीकरण के चक्रों पर एक समानांतर इतिहास लिखा है। गीत चतुर्वेदी का उपन्यास ‘उस पार’ लगभग उसी शैली में स्वतंत्रता पूर्व के भारत और स्वातंत्र्योत्तर भारत का समानांतर इतिहास प्रस्तुत करता है।
आप इस कहानी के प्रतीकों का कोई दूसरा अर्थ निकालने के लिए भी स्वतंत्र हैं। मेरे पास केवल अपनी समझ के पक्ष में तर्क हैं। आपकी समझ के प्रतिपक्ष में मैं कोई तर्क नहीं दे पाऊँगा क्योंकि गीत चतुर्वेदी के ही शब्दों में कहूँ तो।
“मेरे पास प्रेम से बड़ा कोई तर्क नहीं।”