बह्र : 22 22 22 22 22 22
तेज़ दिमागों को रोबोट बनाते हैं हम
देखो क्या क्या करके नोट बनाते हैं हम
दिल केले सा ख़ुद ही घायल हो जाता है
शब्दों से सीने पर चोट बनाते हैं हम
सिक्का यदि बढ़वाना चाहे अपनी कीमत
झूठे किस्से गढ़कर खोट बनाते हैं हम
नदी बहा देते हैं पहले तो पापों की
फिर पीले कागज की बोट बनाते हैं हम
पाँच वर्ष तक हमीं कोसते हैं सत्ता को
फिर चुनाव में ख़ुद को वोट बनाते हैं हम
शुद्ध नहीं, भाषा को गन्दा कर देते हैं
टाई को जब कंठलँगोट बनाते हैं हम
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
गुरुवार, 11 अगस्त 2016
बुधवार, 20 जुलाई 2016
ग़ज़ल : सब आहिस्ता सीखोगे
जल्दी में क्या सीखोगे
सब आहिस्ता सीखोगे
इक पहलू ही गर देखा
तुम बस आधा सीखोगे
सबसे हार रहे हो तुम
सबसे ज़्यादा सीखोगे
सबसे ऊँचा, होता है,
सबसे ठंडा, सीखोगे
सूरज के बेटे हो तुम
सब कुछ काला सीखोगे
सीखोगे जो ख़ुद पढ़कर
सबसे अच्छा सीखोगे
पहले प्यार का पहला ख़त
पुर्ज़ा पुर्ज़ा सीखोगे
ख़ुद को पढ़ लोगे जिस दिन
सारी दुनिया सीखोगे
हाकिम बनते ही ‘सज्जन’
सब कुछ खाना सीखोगे
सब आहिस्ता सीखोगे
इक पहलू ही गर देखा
तुम बस आधा सीखोगे
सबसे हार रहे हो तुम
सबसे ज़्यादा सीखोगे
सबसे ऊँचा, होता है,
सबसे ठंडा, सीखोगे
सूरज के बेटे हो तुम
सब कुछ काला सीखोगे
सीखोगे जो ख़ुद पढ़कर
सबसे अच्छा सीखोगे
पहले प्यार का पहला ख़त
पुर्ज़ा पुर्ज़ा सीखोगे
ख़ुद को पढ़ लोगे जिस दिन
सारी दुनिया सीखोगे
हाकिम बनते ही ‘सज्जन’
सब कुछ खाना सीखोगे
सोमवार, 18 जुलाई 2016
कविता : तुम मुझसे मिलने जरूर आओगी
तुम मुझसे मिलने जरूर आओगी
जैसे धरती से मिलने आती है बारिश
जैसे सागर से मिलने आती है नदी
मिलकर मुझमें खो जाओगी
जैसे धरती में खो जाती है बारिश
जैसे सागर में खो जाती है नदी
मैं हमेशा अपनी बाहें फैलाये तुम्हारी प्रतीक्षा करूँगा
जैसे धरती करती है बारिश की
जैसे सागर करता है नदी की
तुमको मेरे पास आने से
कोई ताकत नहीं रोक पाएगी
जैसे अपनी तमाम ताकत और कोशिशों के बावज़ूद
सूरज नहीं रोक पाता अपनी किरणों को
जैसे धरती से मिलने आती है बारिश
जैसे सागर से मिलने आती है नदी
मिलकर मुझमें खो जाओगी
जैसे धरती में खो जाती है बारिश
जैसे सागर में खो जाती है नदी
मैं हमेशा अपनी बाहें फैलाये तुम्हारी प्रतीक्षा करूँगा
जैसे धरती करती है बारिश की
जैसे सागर करता है नदी की
तुमको मेरे पास आने से
कोई ताकत नहीं रोक पाएगी
जैसे अपनी तमाम ताकत और कोशिशों के बावज़ूद
सूरज नहीं रोक पाता अपनी किरणों को
मंगलवार, 28 जून 2016
ग़ज़ल : ऐसे लूटा गया साँवला कोयला
बह्र : २१२ २१२ २१२ २१२
था हरा औ’ भरा साँवला कोयला
हाँ कभी पेड़ था, साँवला कोयला
वक्त से जंग लड़ता रहा रात दिन
इसलिए हो गया साँवला, कोयला
चन्द हीरे चमकते रहें इसलिये
जिन्दगी भर जला साँवला कोयला
खा के ठंडी हवा जेठ भर हम जिये
जल के विद्युत बना साँवला कोयला
हाथ सेंका किये हम सभी ठंड भर
और जलता रहा साँवला कोयला
चंद वर्षों में ये ख़त्म होने को है
ऐसे लूटा गया साँवला कोयला
था हरा औ’ भरा साँवला कोयला
हाँ कभी पेड़ था, साँवला कोयला
वक्त से जंग लड़ता रहा रात दिन
इसलिए हो गया साँवला, कोयला
चन्द हीरे चमकते रहें इसलिये
जिन्दगी भर जला साँवला कोयला
खा के ठंडी हवा जेठ भर हम जिये
जल के विद्युत बना साँवला कोयला
हाथ सेंका किये हम सभी ठंड भर
और जलता रहा साँवला कोयला
चंद वर्षों में ये ख़त्म होने को है
ऐसे लूटा गया साँवला कोयला
सोमवार, 30 मई 2016
ग़ज़ल : वो यहाँ बेलिबास रहती है
बह्र : २१२२ १२१२ २२
बन के मीठी सुवास रहती है
वो मेरे आसपास रहती है
उसके होंठों में झील है मीठी
मेरे होंठों में प्यास रहती है
आँख ने आँख में दवा डाली
अब जुबाँ पर मिठास रहती है
मेरी यादों के मैकदे में वो
खो के होश-ओ-हवास रहती है
मेरे दिल में न झाँकिये साहिब
वो यहाँ बेलिबास रहती है
बन के मीठी सुवास रहती है
वो मेरे आसपास रहती है
उसके होंठों में झील है मीठी
मेरे होंठों में प्यास रहती है
आँख ने आँख में दवा डाली
अब जुबाँ पर मिठास रहती है
मेरी यादों के मैकदे में वो
खो के होश-ओ-हवास रहती है
मेरे दिल में न झाँकिये साहिब
वो यहाँ बेलिबास रहती है
रविवार, 1 मई 2016
ग़ज़ल : यही सच है कि प्यार टेढ़ा है
बह्र : २१२२ १२१२ २२
ये दिमागी बुखार टेढ़ा है
यही सच है कि प्यार टेढ़ा है
स्वाद इसका है लाजवाब मियाँ
क्या हुआ गर अचार टेढ़ा है
जिनकी मुट्ठी हो बंद लालच से
उन्हें लगता है जार टेढ़ा है
खार होता है एकदम सीधा
फूल है मेरा यार, टेढ़ा है
यूकिलिप्टस कहीं न बन जाये
इसलिए ख़ाकसार टेढ़ा है
ये दिमागी बुखार टेढ़ा है
यही सच है कि प्यार टेढ़ा है
स्वाद इसका है लाजवाब मियाँ
क्या हुआ गर अचार टेढ़ा है
जिनकी मुट्ठी हो बंद लालच से
उन्हें लगता है जार टेढ़ा है
खार होता है एकदम सीधा
फूल है मेरा यार, टेढ़ा है
यूकिलिप्टस कहीं न बन जाये
इसलिए ख़ाकसार टेढ़ा है
सोमवार, 25 अप्रैल 2016
ग़ज़ल : जो सच बोले उसे विभीषण समझा जाता है
बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २२ २
जब धरती पर रावण राजा बनकर आता है
जो सच बोले उसे विभीषण समझा जाता है
केवल घोटाले करना ही भ्रष्टाचार नहीं
भ्रष्ट बहुत वो भी है जो नफ़रत फैलाता है
कुछ तो बात यकीनन है काग़ज़ की कश्ती में
दरिया छोड़ो इससे सागर तक घबराता है
भूख अन्न की, तन की, मन की फिर भी बुझ जाती
धन की भूख जिसे लगती सबकुछ खा जाता है
करने वाले की छेनी से पर्वत कट जाता
शोर मचाने वाला केवल शोर मचाता है
जब धरती पर रावण राजा बनकर आता है
जो सच बोले उसे विभीषण समझा जाता है
केवल घोटाले करना ही भ्रष्टाचार नहीं
भ्रष्ट बहुत वो भी है जो नफ़रत फैलाता है
कुछ तो बात यकीनन है काग़ज़ की कश्ती में
दरिया छोड़ो इससे सागर तक घबराता है
भूख अन्न की, तन की, मन की फिर भी बुझ जाती
धन की भूख जिसे लगती सबकुछ खा जाता है
करने वाले की छेनी से पर्वत कट जाता
शोर मचाने वाला केवल शोर मचाता है
शनिवार, 23 अप्रैल 2016
ग़ज़ल : पुल की रचना वो करते जो खाई के भीतर जाते हैं
बह्र : 22 22 22 22 22 22 22 22
वो तो बस पुल पर चलते जो गहराई से घबराते हैं
पुल की रचना वो करते जो खाई के भीतर जाते हैं
जिनसे है उम्मीद समय को वो पूँजी के सम्मोहन में
काम गधों सा करते फिर सुअरों सा खाकर सो जाते हैं
धूप, हवा, जल, मिट्टी इनमें से कुछ भी यदि कम पड़ जाए
नागफनी बढ़ते जंगल में नाज़ुक पौधे मुरझाते हैं
जिनके हाथों की कोमलता पर दुनिया वारी जाती है
नाम वही अपना पत्थर के वक्षस्थल पर खुदवाते हैं
नफ़रत की भट्ठी में शब्दों के ईंधन से आग लगाकर
सत्ता देवी के तर्पण को ख़ून हमारा खौलाते हैं
वो तो बस पुल पर चलते जो गहराई से घबराते हैं
पुल की रचना वो करते जो खाई के भीतर जाते हैं
जिनसे है उम्मीद समय को वो पूँजी के सम्मोहन में
काम गधों सा करते फिर सुअरों सा खाकर सो जाते हैं
धूप, हवा, जल, मिट्टी इनमें से कुछ भी यदि कम पड़ जाए
नागफनी बढ़ते जंगल में नाज़ुक पौधे मुरझाते हैं
जिनके हाथों की कोमलता पर दुनिया वारी जाती है
नाम वही अपना पत्थर के वक्षस्थल पर खुदवाते हैं
नफ़रत की भट्ठी में शब्दों के ईंधन से आग लगाकर
सत्ता देवी के तर्पण को ख़ून हमारा खौलाते हैं
शनिवार, 16 अप्रैल 2016
ग़ज़ल : जहाँ में पाप जो पर्वत समान करते हैं
बह्र : 1212 1122 1212 22
जहाँ में पाप जो पर्वत समान करते हैं
वो मंदिरों में सदा गुप्तदान करते हैं
लहू व अश्क़, पसीने को धान करते हैं
हमारे वास्ते क्या क्या किसान करते हैं
कभी मिली ही नहीं उन को मुहब्बत सच्ची
जो अपने हुस्न पे ज़्यादा गुमान करते हैं
गरीब अमीर को देखे तो देवता समझे
यही है काम जो पुष्पक विमान करते हैं
जो मंदिरों में दिया काम आ सका किसके?
नमन उन्हें जो सदा रक्तदान करते हैं
जहाँ में पाप जो पर्वत समान करते हैं
वो मंदिरों में सदा गुप्तदान करते हैं
लहू व अश्क़, पसीने को धान करते हैं
हमारे वास्ते क्या क्या किसान करते हैं
कभी मिली ही नहीं उन को मुहब्बत सच्ची
जो अपने हुस्न पे ज़्यादा गुमान करते हैं
गरीब अमीर को देखे तो देवता समझे
यही है काम जो पुष्पक विमान करते हैं
जो मंदिरों में दिया काम आ सका किसके?
नमन उन्हें जो सदा रक्तदान करते हैं
शुक्रवार, 8 अप्रैल 2016
प्रेम (पाँच छोटी कविताएँ)
(१)
जिनमें प्रेम करने की क्षमता नहीं होती
वो नफ़रत करते हैं
बेइंतेहाँ नफ़रत
जिनमें प्रेम करने की बेइंतेहाँ क्षमता होती है
उनके पास नफ़रत करने का समय नहीं होता
जिनमें प्रेम करने की क्षमता नहीं होती
वो अपने पूर्वजों के आखिरी वंशज होते हैं
(२)
तुम्हारी आँखों के कब्जों ने
मेरे मन के दरवाजे को
तुम्हारे प्यार की चौखट से जोड़ दिया है
इस तरह हमने जाति और धर्म की दीवार के
आर पार जाने का रास्ता बना लिया है
हमारे जिस्म इस दरवाजे के दो ताले हैं
हम दोनों के होंठ इन तालों की दो जोड़ी चाबियाँ
इस तरह दोनों तालों की एक एक चाबी हम दोनों के पास है
जब जब दरवाजा खुलता है
दीवाल घड़ी बन्द पड़ जाती है
(३)
मैं तुम्हारी आँख से निकला हुआ आँसू हूँ
मुझे गिरने मत देना
जिनमें प्रेम करने की क्षमता नहीं होती
वो नफ़रत करते हैं
बेइंतेहाँ नफ़रत
जिनमें प्रेम करने की बेइंतेहाँ क्षमता होती है
उनके पास नफ़रत करने का समय नहीं होता
जिनमें प्रेम करने की क्षमता नहीं होती
वो अपने पूर्वजों के आखिरी वंशज होते हैं
(२)
तुम्हारी आँखों के कब्जों ने
मेरे मन के दरवाजे को
तुम्हारे प्यार की चौखट से जोड़ दिया है
इस तरह हमने जाति और धर्म की दीवार के
आर पार जाने का रास्ता बना लिया है
हमारे जिस्म इस दरवाजे के दो ताले हैं
हम दोनों के होंठ इन तालों की दो जोड़ी चाबियाँ
इस तरह दोनों तालों की एक एक चाबी हम दोनों के पास है
जब जब दरवाजा खुलता है
दीवाल घड़ी बन्द पड़ जाती है
(३)
मैं तुम्हारी आँख से निकला हुआ आँसू हूँ
मुझे गिरने मत देना
अपनी उँगली की पोर पर लेकर
अपने होंठों से लगा लेना
मैं तुम्हारे जीवन में नमक की कमी नहीं होने दूँगा
(४)
मैं तुम्हारी आँख में ठहरा हुआ आँसू हूँ
मुझे बाहर मत निकलने देना
मैं तुम्हारे दिल को सूखने नहीं दूँगा
प्रेम की फ़सल खारे पानी में ही उगती है
(५)
हँसते समय तुम्हारे गालों में बनने वाला गड्ढा
बिन पानी का समंदर है
जो न तो मुझे डूबोता है
न तैरकर बाहर निकलने देता है
अपने होंठों से लगा लेना
मैं तुम्हारे जीवन में नमक की कमी नहीं होने दूँगा
(४)
मैं तुम्हारी आँख में ठहरा हुआ आँसू हूँ
मुझे बाहर मत निकलने देना
मैं तुम्हारे दिल को सूखने नहीं दूँगा
प्रेम की फ़सल खारे पानी में ही उगती है
(५)
हँसते समय तुम्हारे गालों में बनने वाला गड्ढा
बिन पानी का समंदर है
जो न तो मुझे डूबोता है
न तैरकर बाहर निकलने देता है
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