अमीरी बेवफ़ा मौका मिले तो छोड़ जाती है
गरीबी बावफ़ा आकर कलेजे से लगाती है
भरा हो पेट जिसका ठूँस कर उसको खिलाती, पर
जो भूखा हो अमीरी भी उसे भूखा सुलाती है
अमीरी का दिवाला भर निकलता है यहाँ लेकिन
गरीबी ऋण न चुकता कर सके तो जाँ गँवाती है
अमीरी छू के इंसाँ को बना देती है पत्थर सा
गरीबी पत्थरों को गढ़ उन्हें रब सा बनाती है
ये दोनों एक माँ की बेटियाँ हैं इसलिए ‘सज्जन’
गरीबी ख़ून देकर भी अमीरी को बचाती है