शनिवार, 4 अगस्त 2012

कविता : प्रेम की परखनली में ईश्वर का संश्लेषण

आपके मुँह में छाले हैं तो क्या हरी मिर्च को मीठा हो जाना चाहिए

अगर राहु और केतु कल्पनाएँ हैं
तो जिन कहानियों से राहु और केतु जन्मे हैं वो?
हर देश में, हर धर्म में
झूठ इतनी आसानी से अमर क्यों हो जाते हैं?

धर्मग्रंथों में अच्छी कहानियाँ और नीतिपरक उपदेश होते हैं ईश्वर नहीं

खूबसूरत कल्पनाएँ सच मानी जाने के लिए अभिशप्त हैं

‘सत्य ही शिव है, शिव ही सुंदर है’ से बड़ा सच ‘सुंदर ही शिव है, शिव ही सत्य है’ होता है

तीव्रता में, प्रसार में, नुकसान में
धर्म दुनिया का सबसे बड़ा नशा है
नशा करने की खुली छूट मदहोशी पर खत्म होती है
जिसे धर्म का डॉक्टर स्वास्थ्य का उच्चतम बिंदु कहता है

आस्तिकों से उनका विश्वास छीनने की कोशिश करने वालों को राक्षस कहा गया
क्या नास्तिकों से उनका अविश्वास छीनने की कोशिश राक्षसत्व नहीं है?

आस्तिकता पैतृक संपत्ति है
नास्तिकता स्वयं के खून पसीने की कमाई

पूर्ण आस्तिक या पूर्ण नास्तिक होना लगभग असंभव है
लोग अपनी सुविधानुसार इन दोनों के बीच का कोई रास्ता चुनते है

हम कुछ नया करने से ज्यादा महत्वपूर्ण पुराने कूड़े को सुरक्षित रखना समझते हैं

प्रशंसा सत्तालोभी और अप्सराभोगी देवताओं को प्रसन्न कर सकती है ईश्वर को नहीं
देवता का विलोम राक्षस नहीं होता

ऐसा क्यूँ है?
इस प्रश्न का उत्तर दुर्धर और अविश्वसनीय है
क्या होना चाहिए?
सब इसका उत्तर जानते हैं
काश! कि सच इससे उल्टा होता

जटिल सिद्धान्तों का सरलीकरण उन्हें विकृत कर देता है
सिद्धान्तों की सही समझ अपवादों को समझे बिना असंभव है

धार्मिक साहित्यकारों ने अपने समय का सच लिखा होता
तो वो कब का मिटा दिया गया होता
किंतु मीठा मधुमेह के रोगी हेतु जहर है

जिनके घर शीशे के होते हैं
वो सबको हमेशा यही उपदेश देते हैं
कि पत्थर मारना बुरी बात है

क्वांटम सिद्धांत के अनुसार
अँधेरे बंद कमरे में इंसान न जिंदा होता है न मुर्दा
लेकिन रोशनी की एक किरण भी उसे जीवित कर सकती है

कितने लोग स्वप्न देखते समय आँखें खुली रखते हैं?

दुनिया के सबसे ताकतवर शब्दों का सबसे ज्यादा दुरुपयोग होता आया है
जैसे प्यार, धर्म, ईश्वर, सत्ता.....
शक्ति समय के आरंभ से ही अभिशप्त है

जाति, धर्म, प्रदेश, देश.....
हर पंक्षी अपना पिंजरा खुद चुनता है

आसमान केवल एक भ्रम है
जहाँ पहुँचने पर चारों तरफ अँधेरा ही अँधेरा दिखाई पड़ता है
दूर से देखने पर जमीन आसमान से भी खूबसूरत दिखाई पड़ती है

गर्व अहंकार का पिता है
वीररस की सारी रचनाएँ मृत्यु की आरती हैं

स्वयं के साथ बलात्कार करने पर
हर बार दर्द से मर जाता हूँ
मेरा एक पाँव बर्फ़ में है दूसरा आग में

चेतना एक भ्रम है जिसके बिना सारी वास्तविकताएँ अर्थहीन हैं

तुलसी को मैं तबसे सुनता आया हूँ
जब मुझे शब्दों के सामान्य अर्थ भी नहीं पता थे

कितने लोग अपने जीवन में तुलसी जैसों से मुक्ति पाते हैं?

तुलसी महान प्रेमी थे
प्रेम का घनत्व बढ़ने के साथ साथ उसकी कोमलता भी बढ़ती जाती है
प्रेम में घातक चोट खाई थी तुलसी ने और भीतर तक टूटे थे
इसलिए वो न कभी अपना सच लिख सके
न अपने राम का

अच्छे साहित्यकार चेचक की तरह होते हैं
बीमारी समय खत्म कर देता है लेकिन निशान हमेशा रहते हैं

शब्द मेरे चेहरे पर उगते हैं
नियमित शेव न करूँ तो असभ्य लगने लगता हूँ

क्या लिखा जाय
आज का बदसूरत सच या आने वाले कल के लिए एक खूबसूरत झूठ

मूर्तियों ने हमेशा इंसानों से ज्यादा बेहतर जीवन जिया है
देवताओं ने यूँ ही मूर्तियों में अपना घर नहीं बनाया

बिग बैंग के समय पल भर के लिए सिर्फ़ रोशनी थी
अँधेरा रोशनी का बेटा है

सृजन जन्म की प्रक्रिया है
जल्दी जन्म होने पर बच्चे की जान जा सकती है
देर होने पर माँ की

क्वांटम सिद्धांत और क्रमिक विकास के सिद्धांत के अनुसार
अनिश्चितताएँ न होतीं तो प्रकृति सारे कमजोरों का नामोनिशान मिटा देती
प्रकाश की सीमा उसकी तरंगदैर्ध्य है
प्रकाश जो नहीं दिखा पाता उसे अनिश्चितताएँ दिखा देती हैं
धर्म का सबसे घातक हथियार अनिश्चितताएँ हैं
धर्म को सबसे ज्यादा डर भी अनिश्चितताओं से लगता है

मीठापन सड़कर कड़वी शराब बन जाता है
कड़वाहट वक्त के साथ कम होती जाती है और नशा बढ़ता जाता है
मिठास समय के साथ नशा बन जाने के लिए अभिशप्त है

सिर्फ पानी ही बिना बहके शराब को पूरी तरह पी सकता है
बाकी सब नशा पीते हैं
पानी सृष्टि के प्रारंभ से अब तक वैसे का वैसा है
बड़ा कठिन है पानी होना

विज्ञान नशे का एंटीडोट है

हम जो करने जा रहे हैं वो पाप है
यह जानने से ज्यादा जरूरी है पाप शब्द पर विश्वास करना

जिंदगी के लिए जितना जरूरी है ये सच जानना
कि सूरज आग का एक दहकता हुआ गोला है
जिसके भीतर लगातार हाइड्रोजन परमाणु के नाभिक संलयन करके हीलियम का नाभिक बनाते रहते हैं
उतनी ही जरूरी है ये कल्पना कि सूरज एक देवता है
जो अपने सात घोड़ों वाले रथ पर सवार होकर दिनभर चलता रहता है
और जरूरी ये भी है कि समझा जाए
कल्पना और सच के बीच का स्पष्ट अंतर
क्योंकि सच और कल्पना जब एक दूसरे की कुर्सी पर बैठते हैं तो सिर्फ़ विनाश होता है

ईश्वर कोई कवि या लेखक या मूर्तिकार या चित्रकार होगा
वह अपनी सर्वश्रेष्ठ कृति बना चुका है या नहीं
इसमें उसे स्वयं संदेह है

ईश्वर का भविष्य पर नियंत्रण होता
तो वो अपनी सर्वश्रेष्ठ कृति सबसे पहले बनाता

ब्रह्मांड की उत्पत्ति का महासिद्धांत खोजे जाने के बाद
मानव शायद देख सके अपना सबसे संभावित भविष्य
क्या इसीलिए ईश्वर जब तब मानव की मदद करने आता है
क्या ईश्वर भी भविष्यलोभी है?

फूल पेड़ के स्वप्न हैं
कच्चे फल महत्वाकांक्षाएँ
फलों का पक कर गिरना वास्तविकता

पेड़ हर साल वो दुख झेलता है
जो इंसान जीवन में एक बार भी झेल नहीं पाता

पत्थर खाकर फल देना
पेड़ की उदारता नहीं उसकी लाचारी है
अपने हत्यारे को आक्सीजन देकर जिंदा रखना उसकी आदत है

पकने के बाद भी जो फल पेड़ से चिपके रहते हैं
वो सड़ जाते हैं
गुरुओ! चेलों को अपने गुरुत्व से मुक्त कर दो

पेड़ हँसता है
काटने वाले की मूर्खता पर

सुख
बेफ़िक्री से प्यार करता है
सुविधा से शारीरिक संबंध रखता है
दुख का पति है

हम इंसान का मुखौटा लगाए जानवर हैं

प्रेम की परखनली बिना ईश्वर का संश्लेषण असंभव है
हटा दो बाकी सारे यंत्र, पात्र, मर्तबान, समीकरणें, किताबें, पुस्तिकाएँ
जो केवल इसलिए बनाए गए हैं
ताकि ईश्वर के सभी अवयवों की सही मात्रा तक कभी इंसान पहुँच ही न सके

प्रेम की परखनली अपने अभिकर्मक स्वयं खोज लेती है

नफ़रत की अभिव्यक्ति में शब्द कम पड़ते हैं
प्रेम की अभिव्यक्ति शब्दहीन होती है

कुछ मुझ से प्रेम करते हैं
कुछ से मैं प्रेम करता हूँ
दुनिया शब्दों से प्रेम करती है

कामी शब्द ढूँढते हैं
प्रेमी शब्दों से मुक्ति

दिल सिर्फ़ तुम्हें चाहता है
दिमाग तुम्हारा सबसे अच्छा विकल्प ढूँढता है

वो लोग जिनके दिल और दिमाग समान रूप से कार्यशील थे
प्रकृति ने उन्हें विकास क्रम में लुप्तप्राय बना दिया
घरेलू झगड़ों से फ़ायदा हमेशा बाहरी लोगों को होता है

सतह पर पृष्ठ तनाव रहता है
गहराई में अँधेरा
पानी थोड़ी ही गहराई तक पारदर्शी होता है
उसके बाद वो प्रकाश को वापस घुमा देता है या सोख लेता है

मेरी उँगलियाँ जब तुम्हारे गालों का स्पर्श करती हैं
उँगलियों के इलेक्ट्रॉन तुम्हारे गालों के इलेक्ट्रॉनों को धक्का भर देते हैं
छूना नहीं कहते इसे

घर्षण से कुछ इलेक्ट्रॉनों का आदान प्रदान होता है
छूना नहीं कहते इसे भी

तुम्हारा प्यार मेरे होंठ हैं
खाते समय कभी कभी होंठ कट ही जाते हैं
शुक्र है कि लार में जीवित नहीं रह पाते सड़न पैदा करने वाले जीवाणु
इसलिए होंठों के घाव जल्दी भर जाते हैं
क्रमिक विकास में हमने होंठों को बचा कर रखना सीख लिया है

बादल आँसू बहाते हैं और रेगिस्तान रोता है
रोने वालों की आँखें अक्सर सूखी रहती हैं
आँसू बहाने वाले अक्सर रोते नहीं

सच कड़वा नहीं होता
बस इसका स्वाद अलग होता है, कॉफ़ी की तरह

कितनी सारी ग़ज़लें जबरन कहे गए मत्ले के साथ जीती हैं
कितने सारे मत्ले भर्ती के अश’आर संग निबाहते हैं
मुकम्मल ग़ज़लें दुनियाँ में होती ही कितनी हैं

तुम भूलभुलैया हो
हर बार तुम्हारी आत्मा तक पहुँचते पहुँचते मैं राह भटक जाता हूँ

तुम्हारे हाथों पर किसी और की लगाई मेरे नाम की मेंहदी नहीं हूँ मैं
जिसे चार कपड़े और चार बर्तन, चार दिन में हमेशा के लिए मिटा देंगे

मैं तुम्हारी आत्मा की तलाश में निकला वो मुसाफिर हूँ
जो कभी अपनी मंजिल तक नहीं पहुँच पाएगा
लेकिन ये जानते हुए भी तुम्हारी आत्मा हमेशा जिसका इंतजार करेगी

हर चाँद का एक हिस्सा ऐसा होता है जिसे धरती कभी नहीं देख पाती

प्रेम पर लिखी कोई कविता कभी पूर्ण नहीं होती

प्रकाश सूरज का प्यार है
आवेशित कण प्यार का बाईप्रोडक्ट हैं
हर धरती के सीने में खौलते हुए लावे से बना चुंबकीय क्षेत्र सूरज से उसकी रक्षा करता है

छोटे और आसान रास्ते से मंजिल तक पहुँचने वाला भगोड़ा होता है
जीवन के सारे आनंद लंबे और कठिन रास्ते पर होते हैं
मंजिल कुछ नहीं जानती आनंद और रास्तों के बारे में
मंजिल पर सिर्फ़ नशा मिलता है

तुमको छू कर आता हुआ प्रकाश
मेरी आँख का पानी है

तुमको सोते हुए देखना
तुममें घुलना है

कपड़े तुम्हारे जिस्म से उतरते ही मर जाते हैं
साँस तुम्हारे जिस्म से निकलते ही भभक उठती है
चूड़ियाँ तुम्हारे हाथों से निकलकर गूँगी हो जाती हैं
तुम गहने पहनना छोड़ दो तो क्या इस्तेमाल रह जाएगा अनमोल पत्थरों का
तुम न होती तो पुरुष अपने झूठे अहंकार के लिए लड़ भिड़ कर कब का खत्म हो गए होते

तुम्हारे छूने भर से बेजुबान चीजें गुनगुनाने लगती हैं
जीवन तुम्हारी छुवन में है
मौत पुरुषों की भुजाओं में

पहचानो अपनी जीवनदायिनी शक्ति
मृत्यु देने वाली भुजाओं को छूकर उन्हें जीवन से भर दो
एक बार फिर जानवरों को इंसान बना दो

ईश्वर तक पहुँचने के रास्ते का एकमात्र द्वार नारी के दिल में होता है

नारी के दिल तक पहुँचने के रास्ते में ढेर सारे मंदिर, मस्जिद, धर्मग्रंथ, धर्मगुरु.....
ठेला लगाकर “ईश्वर ले लो, ईश्वर ले लो, सस्ता सुंदर और टिकाऊ ईश्वर ले लो” की आवाज लगाते रहते हैं

“नारी नरक का द्वार है” आज तक का सबसे भयानक झूठ है।

प्रेम को सदियों से दिए जा रहे ज़हर के बावजूद भी
प्रेम अपने हर रूप में इसीलिए फल फूल रहा है
क्योंकि ईश्वर मरा नहीं करता

सपना बहुत खूबसूरत है
मगर मैं मौत से पहले एक बार जागना चाहता हूँ

कितनी भी रेखाएँ खींच लो
दो रेखाओं के बीच एक और रेखा खींचने की जगह हमेशा बची रहती है

अनंततम सूक्ष्म हिस्सों में तोड़ने के बाद ही
समाकलन शत प्रतिशत शुद्ध योगफल दे पाता है
उन आकारों के लिए भी जो सामान्य प्रक्रियाओं से जोड़े जाने असंभव हैं

सबसे विनाशकारी है ये मानना कि जो हम जानते हैं वही सही है बाकी सब गलत

नास्तिकों ने मानवता को कितना नुकसान पहुँचाया है?
तुलना कीजिए उस नुकसान से जो उन परम धार्मिक लोगों ने इंसानियत को पहुँचाया
जो ये मानते हैं कि घोर पाप भी माफ़ी माँगने और कुछ कर्मकांडों से धुल जाएँगें

हर शिव ये जानता है कि कामदेव के बिना सृष्टि का चलना असंभव है
किंतु हर शिव कामदेव को भस्म करने का नाटक रचता है
परिणाम?
कामदेव अजेय हो कर वापस आता है

जरूरत से ज्यादा घनत्व कृष्ण विवर का निर्माण करता है
कृष्ण विवर किसी के किसी काम नहीं आता
कृष्ण विवर शक्ति की कभी न मिटने वाली भूख का रोगी है
आवश्यकता से अधिक शक्ति कृष्ण विवर बनने के लिए अभिशप्त है
कृष्ण विवर सबकुछ अपने जैसा बना देना चाहता है

बहुत कम सूरज ऐसे होते हैं जिनकी पृथ्वी पर जीवन होता है

13.7 अरब साल लगे हैं मूल कणों को सूचनाएँ का वो सही क्रम जानने में
जिसमें एक दूसरे से जुड़कर वो एक इंसानी दिमाग बना देते हैं

ईश्वर हमारे ब्रह्मांड के बाहर खड़ा तमाशाई है
जो अपना दिल बहलाने के लिए रोज नए धमाके करता है

कितनी बार ईश्वर ने ऐसे ब्रह्मांड बनाने की कोशिश की जहाँ भविष्य निश्चित था
पर निश्चित भविष्य आत्मघाती होता है

फिर ईश्वर ने रचीं अनिश्चितताएँ
और जी उठे ब्रह्मांड

ईश्वर जिस ब्रह्मांड में जाता है उसके नियमों का पालन करता है

अनिश्चितताओं के कारण
ईश्वर न हर पाप का दंड दे सकता है, न हर पुण्य का फल
इसीलिए हार कर उसे कहना पड़ता है कि कर्म करो फल की चिंता मत करो

हर ब्रह्मांड ये समझता है कि ईश्वर ने उसका निर्माण किसी खास उद्देश्य से किया है

सभी संख्याओं का योग शून्य होता है

बुधवार, 1 अगस्त 2012

ग़ज़ल : दूर देश से आई रानी ऐसे शासन कर पाई


दूर देश से आई रानी ऐसे शासन कर पाई
राजकुमार बड़ा होने तक राजा का गुड्डा लाई

दोषी कैसे हो सकता है अच्छे पापा का बेटा
मम्मी का प्यारा बच्चा वो सुंदर बहना का भाई

दोनों में से जिसको चाहो अपनी मर्जी से चुन लो
इक विकल्प है अंधकूप औ’ दूजा है गहरी खाई

हाथी पर बैठी रानी को देख सकी न प्रजा जब तो
राजकोष खाली कर अपनी ऊँची मूरत बनवाई

सदियों से आदत थी सह लेना वंशों का दुःशासन
बाप गया तो जनता बेटे को सत्ता में ले आई

रविवार, 29 जुलाई 2012

ग़ज़ल : हमारे प्यार का सागर अगर गहरा नहीं होता


किनारे दूर तक फैला हुआ सहरा नहीं होता
हमारे प्यार का सागर अगर गहरा नहीं होता

महक उठतीं हवाएँ औ’ फ़िजा रंगीन हो जाती
जो काँटों का गुलाब-ए-इश्क पर पहरा नहीं होता

नदी खुद ही स्वयं को शुद्ध कर लेती अगर पानी
उन्हीं दो चार बाँधों के यहाँ ठहरा नहीं होता

कभी तो चीख सड़ते अन्न की इन तक पहुँच जाती
हमारे हाकिमों का दिल अगर बहरा नहीं होता

धमाकों में हुई पहचान बिखरे हाथ पैरों से
गरीबी का कभी कोई कहीं चहरा नहीं होता

गुरुवार, 26 जुलाई 2012

कविता : श्रेष्ठ कवि / लेखक

कविता पढ़ने के लिए उसे आँखों से सुनना पड़ता है और कविता सुनने के लिए उसे कानों से देखना पड़ता है।
                             - आक्टॉवियो पाज़
तो आइए और आँखों से सुनिए
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पेट्रोल में लगी हुई आग मुझ तक नहीं पहुँचेगी
(सरकार / मेरी कंपनी मुझे पेट्रोल की एक तय मात्रा का बाजार मूल्य देती है)

महँगाई की आँधी मुझ तक पहुँचते पहुँचते शीतल झोंका बन जाएगी
(मेरी तनख्वाह बढ़ती महँगाई के साथ बढ़ती है)

मेरे हिस्से की गर्मी से मेरे देश का गरीब मरता है
(मेरा कार्यालय, मेरी गाड़ी, मेरा घर सब वातानुकूलित हैं। जो अंदर का वातावरण ठंढा करने के बदले बाहर का वातावरण और गर्म करते हैं।)

टोल बैरियर वाला मुझसे पैसे नहीं माँगता।
(कुछ दिन और आम आदमी से पैसे की उगाही कर लेगा)

बनिया मेरा घरेलू सामान मुफ़्त में दे जाता है।
(आम आदमी के घरेलू सामान में थोड़ी और मिलावट कर लेगा)

मेरे वो खर्चे जो मैं सबसे छुपाकर करता हूँ, सबसे छुपाकर एक आदमी मुझे देता है। मेरे बारे में इतनी जानकारी आपको सूचना का अधिकार भी नहीं दिला सकता। 

मैं वातानुकूलित कमरे में बैठकर देश की आम जनता के दुख दर्दों पर कविता / कहानी / लेख लिखता हूँ जिन्हें पत्रिकाएँ हाथों हाथ लेती हैं। गरीबों का दुख देखकर अक्सर मेरा दिल करता है कि सारे अमीरों की चर्बी निकालकर गरीबों में बाँट दूँ। दूसरे गाँधी की बातें सुनकर मेरा सर श्रद्धा से झुक जाता है। मैं रोज सुबह ईश्वर से दुआ करता हूँ कि प्रभो इस देश से भ्रष्टाचार मिटा दो।

मैं इस देश के शीर्ष समाजवादी कवियों / लेखकों में गिना जाता हूँ। मैं प्रथम श्रेणी का अधिकारी या उसके समकक्ष कुछ अथवा ऐसे अधिकारी का सगा संबंधी हूँ।

सोमवार, 16 जुलाई 2012

ग़ज़ल : यहाँ जग जीत कर बूढ़ा जुआरी टूट जाता है

यहाँ जग जीत कर बूढ़ा जुआरी टूट जाता है
अगर दुत्कार दे मूरत तो शिल्पी टूट जाता है

यही सीखा है केवल आइने को देखकर हमने
यहाँ सच बोलता है जो वो जल्दी टूट जाता है

असर दोनों पे होता है खरी आलोचना का, पर
है मौलिक बेहतर होता, किताबी टूट जाता है

रहे ये घोंसले में और बच्चों को भी पाले, पर
लगे उड़ने पे गर पहरा तो पंछी टूट जाता है

कई तूफ़ान सूनामी ये सीने पर सहे लेकिन
तली में नाव की हो छेद, माँझी टूट जाता है

दवा की और सेवा की जरूरत है इसे लेकिन
दुआ करता न हो कोई तो रोगी टूट जाता है

हजारों दुश्मनों को मार डाले बेहिचक लेकिन
लड़े अपने ही लोगों से तो फौजी टूट जाता है

गुरुवार, 12 जुलाई 2012

कविता : बारिश, किताब और गुलाब


तुम्हारी यादों की किताब बार बार नमकीन बारिश में भीगती है
भीगे हुए दो पन्ने एक हो जाते हैं
भीतर छपे शब्द नमी पाकर फैलते हैं और अपना अस्तित्व खो बैठते हैं

अस्तित्व दर्द का पर्यायवाची है

नमी के बगैर
एक दूसरे से सालों साल सटे हुए पन्ने भी जुड़ नहीं पाते

भीगकर चिपके हुए दो पन्नों को अलग करना सबसे बड़ा गुनाह है

हर फटी पुरानी किताब में एक सूखा गुलाब होता है

खुशकिस्मत होते हैं वो गुलाब जो किताबों की बाहों में सूखते हैं

क्यारियाँ न होतीं तो क्या गुलाब के पौधे न उगते

मंदिर, जयमाल, बगीचे, क्यारियाँ और भी न जाने कहाँ कहाँ सूख रहे हैं गुलाब
मगर गुलाब के बराबर मात्राओं वाला और तुकांत शब्द किताब है
गुलाब और किताब ग़ज़ल का काफ़िया भी बन सकते हैं
फिर भी हर किताब के नसीब में गुलाब नहीं होता

बारिश, किताब और गुलाब मिलकर वह मूलकण बनाते हैं
जो जीवन का निर्माण करने वाले बाकी मूलकणों में द्रव्यमान उत्पन्न करता है

बारिश, किताब और गुलाब के पहले भी जीवन था
पर क्या वाकई वो जीवन था?

रविवार, 8 जुलाई 2012

कविता : तुम्हारी बारिश

विलियम वर्डसवर्थ के अनुसार कविता भावातिरेक में हुआ क्षणिक उद्गार है।
राबर्ट फ़्रास्ट के अनुसार कविता कुछ ऐसी चीज है जिसे कवि लिखते हैं।
जितने लोग उतनी परिभाषाएँ इसलिए अंततः किसी ने हारकर कहा कि कविता और प्रेम को परिभाषित करना असंभव है। पेश है भावातिरेक में हुआ एक उद्गार|
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बारिश धीरे धीरे गुनगुनाती है
वो सारे गीत जो मैं तुम्हारे लिए गाया करता था
झिल्ली और मेढक पार्श्व संगीत देते हैं

भीगी हुई सड़क से लौटती रोशनी तुम्हारी हँसी है

तुमसे प्यार करना
मूसलाधार बारिश में गाड़ी चलाने जैसा क्यों था?
उस भीषण दुर्घटना में मौत से बच जाना अभिशाप था

तुम्हारे बिना रहना हाथ पैरों के बगैर जीना है

भीगी हुई रातरानी तुम्हारे भीगे हुए नाखून के बराबर भी नहीं है

भीगे हुए पहाड़ पर एक एक करके बुझती हुई बत्तियाँ
तुम्हारे गहने हैं जो मैंने उतारे थे एक एक कर

बारिश बंद हो गई है सड़कें सूख रही हैं
काश! एक बार फिर तुम बरसतीं मेरी आत्मा की नमी सूख जाने के पहले

शुक्रवार, 6 जुलाई 2012

ग़ज़ल : हाजिरी हो गई जिंदगी की तरह

जिंदगी हो गई हाजिरी की तरह
हाजिरी हो गई जिंदगी की तरह

काम देता नहीं मेरे मन का मुझे
और कहता है कर बंदगी की तरह

प्यार करने का पहले हुनर सीख लो
फिर इबादत करो आशिकी की तरह

था वो कर्पूर रोया नहीं मोम सा
रोज जलता गया आरती की तरह

काम दफ़्तर का करते बड़े प्यार से
इश्क करते हैं वो अफ़सरी की तरह

फिर से छलिया के होंठों पे जुंबिश हुई
मीडिया बज उठी बाँसुरी की तरह

सोमवार, 2 जुलाई 2012

नवगीत : नीम तले

नीम तले सब ताश खेलते
रोज सुबह से शाम
कई महीनों बाद मिला है
खेतों को आराम

फिर पत्तों के चक्रव्यूह में
धूप गई है हार
कुंद कर दिए वीर प्याज ने
लू के सब हथियार
ढाल पुदीने सँग बन बैठे
भुनकर कच्चे आम

छत पर जाकर रात सो गई
खुले रेशमी बाल
भोर हुई सूरज ने आकर
छुए गुलाबी गाल
बोली छत पर लाज न आती
तुमको बुद्धू राम

शहर गया है गाँव देखने
बड़े दिनों के बाद
समय पुराना नए वक्त से
मिला महीनों बाद
फिर से महक उठे आँगन में
रोटी बोटी जाम

शनिवार, 23 जून 2012

कविता : पूजा


एक भी दिन तुम्हारी पूजा करना भूल जाऊँ
या अगरबत्ती जलाना भूल जाऊँ
या माला फूल चढ़ाना भूल जाऊँ
या आरती करना भूल जाऊँ
या पूजा बीच में छोड़ कर
रोते हुए बच्चे को चुप कराने लग जाऊँ
या...................
जरा सी चूक और तुम नाराज हो जाओगे

तुम्हारी कृपा पाकर मैं गरीबों से घृणा करने लग जाऊँगा
तुम्हारा क्रोध मुझसे मेरी प्रिय वस्तुएँ छीन लेगा

अतः हे देवताओं! मैं नहीं करता तुम्हारी पूजा
कृपया अपनी कृपा और अपना क्रोध
इन दोनों को मुझसे दूर रक्खो