दवा काबिल से पूछो
दुआ काहिल से पूछो
कहाँ अब है मेरा दिल?
मेरे कातिल से पूछो
मैं कैसा हूँ? कहाँ हूँ?
ये अपने दिल से पूछो
भटकता हूँ कहाँ मैं?
मेरी मंजिल से पूछो
मैं क्या उसके लिए हूँ?
ये उसके तिल से पूछो
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।