मुफ़्त के संबंध मत दो
बंधंनों का बोझ ढेरों
सह चुकी हूँ
तोड़कर मैं बाँध सारे
बह चुकी हूँ
कल मुझे जिससे घुटन हो
आज वह अनुबंध मत दो
पुत्र, भाई, तात सब
अधिकार चाहें
मित्र केवल शब्द ही
दो-चार चाहें
टूट जाऊँ भार से, वह
स्वर्ण का भुजबंध मत दो
क्या जरूरी है करें
संवाद पूरा
हो न पाया जो सहज
छोड़ें अधूरा
जिंदगी भर जो न टूटे
प्लीज, वह सौगंध मत दो
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
गुरुवार, 26 जनवरी 2012
मंगलवार, 24 जनवरी 2012
ग़ज़ल : यहाँ कोई धरम नहीं मिलता
यहाँ कोई धरम नहीं मिलता
मयकदे में वहम नहीं मिलता
किसी बच्चे ने जान दी होगी
गोश्त यूँ ही नरम नहीं मिलता
आग दिल में नहीं लगी होती
अश्क इतना गरम नहीं मिलता
हथकड़ी सौ सदी पुरानी, पर,
आज हाथों में दम नहीं मिलता
कोई अपना ही बेवफ़ा होगा
यूँ ही आँगन में बम नहीं मिलता
भूख तड़पा के मारती है पर
कहीं कोई जखम नहीं मिलता
मयकदे में वहम नहीं मिलता
किसी बच्चे ने जान दी होगी
गोश्त यूँ ही नरम नहीं मिलता
आग दिल में नहीं लगी होती
अश्क इतना गरम नहीं मिलता
हथकड़ी सौ सदी पुरानी, पर,
आज हाथों में दम नहीं मिलता
कोई अपना ही बेवफ़ा होगा
यूँ ही आँगन में बम नहीं मिलता
भूख तड़पा के मारती है पर
कहीं कोई जखम नहीं मिलता
शनिवार, 21 जनवरी 2012
नवगीत : सूरज रे जलते रहना
जब तक तेरे तन में ईंधन
सूरज रे जलते रहना
मान चुके जो अंत निकट है
उनका अंत निकट है सचमुच
जीवन रेख अमिट धरती की
आए गए हजारों हिम युग
आग अमर लेकर सीने में
लगातार चलते रहना
तेरा हर इक बूँद पसीना
छू धरती अंकुर बनता है
हो जाती है धरा सुहागिन
तेरा खून जहाँ गिरता है
बन सपना बेहतर भविष्य का
कण कण में पलते रहना
छँट जाएगा दुख का कुहरा
ठंढ गरीबी की जाएगी
बदकिस्मत लंबी रैना ये
छोटी होती ही जाएगी
बर्फ़-सियासी धीरे धीरे
किरणों से दलते रहना
सूरज रे जलते रहना
मान चुके जो अंत निकट है
उनका अंत निकट है सचमुच
जीवन रेख अमिट धरती की
आए गए हजारों हिम युग
आग अमर लेकर सीने में
लगातार चलते रहना
तेरा हर इक बूँद पसीना
छू धरती अंकुर बनता है
हो जाती है धरा सुहागिन
तेरा खून जहाँ गिरता है
बन सपना बेहतर भविष्य का
कण कण में पलते रहना
छँट जाएगा दुख का कुहरा
ठंढ गरीबी की जाएगी
बदकिस्मत लंबी रैना ये
छोटी होती ही जाएगी
बर्फ़-सियासी धीरे धीरे
किरणों से दलते रहना
रविवार, 15 जनवरी 2012
ग़ज़ल : न इतनी आँच दे लौ को के दीपक ही पिघल जाए
न इतनी आँच दे लौ को के दीपक ही पिघल जाए
न इतने भाव भर दिल में के मेरी आँख गल जाए
सुना है जब भी तू देता है छप्पर फाड़ देता है
न इतना हुस्न दे उसको के रब तू ही मचल जाए
रहूँ जिसके लिए जिंदा कुछ ऐसा छोड़ दुनिया में
कहीं मुर्दा समझ मुझको न मेरी मौत टल जाए
बहुत गीला हुआ आटा, बड़ा ठंढा तवा है, पर
न इतनी आग दे चूल्हे में रब, रोटी ही जल जाए
गुजारिश है मेरे मालिक न देना नूर इतना भी
के जिसको प्यार से छू दूँ वो सोने में बदल जाए
न इतने भाव भर दिल में के मेरी आँख गल जाए
सुना है जब भी तू देता है छप्पर फाड़ देता है
न इतना हुस्न दे उसको के रब तू ही मचल जाए
रहूँ जिसके लिए जिंदा कुछ ऐसा छोड़ दुनिया में
कहीं मुर्दा समझ मुझको न मेरी मौत टल जाए
बहुत गीला हुआ आटा, बड़ा ठंढा तवा है, पर
न इतनी आग दे चूल्हे में रब, रोटी ही जल जाए
गुजारिश है मेरे मालिक न देना नूर इतना भी
के जिसको प्यार से छू दूँ वो सोने में बदल जाए
गुरुवार, 12 जनवरी 2012
एक मुक्तक
न कर विश्वास तारों का तुझे अक्सर दगा देंगे
लगें ये दूर से अच्छे जो पास आए जला देंगे।
अँधेरी रात को ही जगमगाना इनकी फितरत है
ये सच की रौशनी में झट से मुँह अपना छिपा लेंगे।
लगें ये दूर से अच्छे जो पास आए जला देंगे।
अँधेरी रात को ही जगमगाना इनकी फितरत है
ये सच की रौशनी में झट से मुँह अपना छिपा लेंगे।
शनिवार, 7 जनवरी 2012
अमीरी और गरीबी की समीकरणें
इंसान खोज चुका है वे समीकरणें
जो लागू होती हैं अमीरों पर
जिनमें बँध कर चलता है सूर्य
जिनका पालन करती है आकाशगंगा
और जिनके अनुसार इतनी तेजी से
विस्तारित होता जा रहा है ब्रह्मांड
कि एक दिन सारी आकाशगंगाएँ
चली जाएँगी हमारे घटना क्षितिज से बाहर
हमारी पहुँच के परे
ये समीकरणें रचती हैं एक ऐसा संसार
जहाँ अनिश्चितताएँ नगण्य हैं
खोजे जा चुके हैं वे नियम भी
जिनमें बँध कर जीता है गरीब
जिनसे पता चल जाता है परमाणुओं का संवेग
इलेक्ट्रानों की स्थिति, वितरण और विवरण
रेडियो सक्रियता का कारण
ये समीकरणें रचती हैं एक ऐसा संसार
जहाँ चारों ओर बिखरी पड़ीं हैं अनिश्चितताएँ
पर जैसे ही हम मिलाते हैं
गरीबों और अमीरों की समीकरणों को एक साथ
फट जाता है सूर्य
घूमना बंद कर देती है आकाशगंगा
टूटने लग जाते हैं दिक्काल के धागे
हर तरफ फैल जाती है अव्यवस्था
किसी गुप्त स्थान से आने लगती हैं आवाजें
“ऐसा कोई नियम नहीं बन सकता
जो अमीरों और गरीबों पर एक साथ लागू हो सके
हमारे नियम अलग हैं और अलग ही रहेंगे”
कसमसाने लगते हैं
ब्रह्मांड के 95 प्रतिशत भाग को घेरने वाले
काली ऊर्जा और काला द्रव्य
मगर इन आवाजों के बावजूद
सीईआरएन में धमाधम भिड़ते हैं शीशे के परमाणु
खोजा लिया जाता है
प्रकाश की गति से ज्यादा तेज चलने वाला न्युट्रिनो
पकड़ा जाने ही वाला है हिग्स बोसॉन
लोगों का गुस्सा उतरने लगा है सड़कों पर
संसद का एक सदन पार चुका है लोकपाल
धीरे धीरे खोजे जा रहे हैं
दो परस्पर विरोधी समीकरणों को जोड़ने वाले
छुपकर बैठे धागे
दूर कहीं मुस्कुराता हुआ ईश्वर
निश्चित कर रहा है समय
ब्रह्मांड के 95 प्रतिशत काले हिस्से के सफेद होने का
जो लागू होती हैं अमीरों पर
जिनमें बँध कर चलता है सूर्य
जिनका पालन करती है आकाशगंगा
और जिनके अनुसार इतनी तेजी से
विस्तारित होता जा रहा है ब्रह्मांड
कि एक दिन सारी आकाशगंगाएँ
चली जाएँगी हमारे घटना क्षितिज से बाहर
हमारी पहुँच के परे
ये समीकरणें रचती हैं एक ऐसा संसार
जहाँ अनिश्चितताएँ नगण्य हैं
खोजे जा चुके हैं वे नियम भी
जिनमें बँध कर जीता है गरीब
जिनसे पता चल जाता है परमाणुओं का संवेग
इलेक्ट्रानों की स्थिति, वितरण और विवरण
रेडियो सक्रियता का कारण
ये समीकरणें रचती हैं एक ऐसा संसार
जहाँ चारों ओर बिखरी पड़ीं हैं अनिश्चितताएँ
पर जैसे ही हम मिलाते हैं
गरीबों और अमीरों की समीकरणों को एक साथ
फट जाता है सूर्य
घूमना बंद कर देती है आकाशगंगा
टूटने लग जाते हैं दिक्काल के धागे
हर तरफ फैल जाती है अव्यवस्था
किसी गुप्त स्थान से आने लगती हैं आवाजें
“ऐसा कोई नियम नहीं बन सकता
जो अमीरों और गरीबों पर एक साथ लागू हो सके
हमारे नियम अलग हैं और अलग ही रहेंगे”
कसमसाने लगते हैं
ब्रह्मांड के 95 प्रतिशत भाग को घेरने वाले
काली ऊर्जा और काला द्रव्य
मगर इन आवाजों के बावजूद
सीईआरएन में धमाधम भिड़ते हैं शीशे के परमाणु
खोजा लिया जाता है
प्रकाश की गति से ज्यादा तेज चलने वाला न्युट्रिनो
पकड़ा जाने ही वाला है हिग्स बोसॉन
लोगों का गुस्सा उतरने लगा है सड़कों पर
संसद का एक सदन पार चुका है लोकपाल
धीरे धीरे खोजे जा रहे हैं
दो परस्पर विरोधी समीकरणों को जोड़ने वाले
छुपकर बैठे धागे
दूर कहीं मुस्कुराता हुआ ईश्वर
निश्चित कर रहा है समय
ब्रह्मांड के 95 प्रतिशत काले हिस्से के सफेद होने का
बुधवार, 4 जनवरी 2012
क्षणिका : चर्बी
वो चर्बी
जिसकी तुम्हें न अभी जरूरत है
न भविष्य में होगी
वो किसी गरीब के शरीर का मांस है
जिसकी तुम्हें न अभी जरूरत है
न भविष्य में होगी
वो किसी गरीब के शरीर का मांस है
रविवार, 1 जनवरी 2012
नए साल में एक नई कविता
आज एक चक्कर और पूरा हुआ
ऐसा कहकर धरती ने दूर तक फैली आकाशगंगा को देखा
उसके मुँह से आह निकल पड़ी
सूरज से दूर
कितनी खूबसूरत दिखती है आकाशगंगा
काश! मैं मुक्त हो पाती सूरज के चिर बंधन से
केवल एक साल के लिए
पड़ोसी मंगल भी बोल पड़ा
हाँ भाभी, चलिए चलते हैं
मैं भी ऊब गया हूँ इस नीरस जिंदगी से
एक बारगी धरती के बदन में खुशी की लहर दौड़ गई
कि मंगल भी उसकी तरह सोचता है
पर अगले ही पल उसे याद आया
अरे! मैं तो खरबों खरब बच्चों की माँ हूँ
मैं सूरज से दूर गई
तो कहाँ से आएगी इनको जीवित रखने के लिए ऊर्जा
न न मंगल भैया!
मेरे बच्चों से बढ़कर मेरे लिए और कुछ नहीं है
इतना कहकर
धरती चल पड़ी
सूरज का चक्कर लगाने
और उसके बच्चे इस सब से बेखबर
चल पड़े नया साल मनाने
ऐसा कहकर धरती ने दूर तक फैली आकाशगंगा को देखा
उसके मुँह से आह निकल पड़ी
सूरज से दूर
कितनी खूबसूरत दिखती है आकाशगंगा
काश! मैं मुक्त हो पाती सूरज के चिर बंधन से
केवल एक साल के लिए
पड़ोसी मंगल भी बोल पड़ा
हाँ भाभी, चलिए चलते हैं
मैं भी ऊब गया हूँ इस नीरस जिंदगी से
एक बारगी धरती के बदन में खुशी की लहर दौड़ गई
कि मंगल भी उसकी तरह सोचता है
पर अगले ही पल उसे याद आया
अरे! मैं तो खरबों खरब बच्चों की माँ हूँ
मैं सूरज से दूर गई
तो कहाँ से आएगी इनको जीवित रखने के लिए ऊर्जा
न न मंगल भैया!
मेरे बच्चों से बढ़कर मेरे लिए और कुछ नहीं है
इतना कहकर
धरती चल पड़ी
सूरज का चक्कर लगाने
और उसके बच्चे इस सब से बेखबर
चल पड़े नया साल मनाने
रविवार, 25 दिसंबर 2011
ग़ज़ल : पानी का सारा गुस्सा जब पी जाता है बाँध
पानी का सारा गुस्सा जब पी जाता है बाँध
दरिया को बाँहों में लेकर बतियाता है बाँध
मत बाँधो उसके गम में तुम बाँध आँसुओं का
बिना सहारे के बनता जो, ढह जाता है बाँध
फाड़ डालती पर्वत की छाती चंचल नदिया
बँध जाती जब दिल माटी का दिखलाता है बाँध
पत्थर सा तन, मिट्टी सा दिल, मन हो पानी सा
तब जनता के हित में कोई बन पाता है बाँध
पर्त पर्त बनते देखा है इसको इसीलिए
सपनों में अक्सर मुझसे मिलने आता है बाँध
यूँ ही ग़ज़ल नहीं बनते कंकड़, पत्थर, मिट्टी,
तेरा मेरा जन्मों का कोई नाता है बाँध
दरिया को बाँहों में लेकर बतियाता है बाँध
मत बाँधो उसके गम में तुम बाँध आँसुओं का
बिना सहारे के बनता जो, ढह जाता है बाँध
फाड़ डालती पर्वत की छाती चंचल नदिया
बँध जाती जब दिल माटी का दिखलाता है बाँध
पत्थर सा तन, मिट्टी सा दिल, मन हो पानी सा
तब जनता के हित में कोई बन पाता है बाँध
पर्त पर्त बनते देखा है इसको इसीलिए
सपनों में अक्सर मुझसे मिलने आता है बाँध
यूँ ही ग़ज़ल नहीं बनते कंकड़, पत्थर, मिट्टी,
तेरा मेरा जन्मों का कोई नाता है बाँध
शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011
क्षणिका : आँच
हमारे तुम्हारे बीच
भले ही अब कुछ भी नहीं बचा
मगर तुम्हारे दिल में जल रही लौ से
मैं आजीवन ऊर्जा प्राप्त करता रहूँगा
क्योंकि आँच अर्थात अवरक्त विकिरण को चलने के लिए
किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं होती
भले ही अब कुछ भी नहीं बचा
मगर तुम्हारे दिल में जल रही लौ से
मैं आजीवन ऊर्जा प्राप्त करता रहूँगा
क्योंकि आँच अर्थात अवरक्त विकिरण को चलने के लिए
किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं होती
सदस्यता लें
संदेश (Atom)