रविवार, 18 सितंबर 2011

ग़ज़ल : छाँव से सटकर खड़ी है धूप ‘सज्जन’

छाँव से सटकर खड़ी है धूप ‘सज्जन’
शत्रु पर सबसे बड़ी है धूप ‘सज्जन’

संगमरमर की सतह से लौट जाती
टीन के पीछे पड़ी है धूप ‘सज्जन’

गर्मियों में लग रही शोला बदन जो
सर्दियों में फुलझड़ी है धूप ‘सज्जन’

भूल से ना रेत पर बरसात कर दें
बादलों से जा लड़ी है धूप ‘सज्जन’

फिर किसी मजलूम की ये जान लेगी
आज कुछ ज्यादा कड़ी है धूप ‘सज्जन’

प्यार शबनम से इसे जबसे हुआ है
यूँ लगे मोती जड़ी है धूप ‘सज्जन’

खोल कर सब खिड़कियाँ आने इसे दो
इस शहर में दो घड़ी है धूप ‘सज्जन’

जिस्म में चुभकर बना देती विटामिन
ज्यों गुरूजी की छड़ी है घूप ‘सज्जन’

गुरुवार, 15 सितंबर 2011

कविता : आदर्श पदार्थ

आदर्श पदार्थ
केवल एक कल्पना है

लेकिन आदर्श पदार्थ की कल्पना किए बिना
लगभग असंभव है
सामान्य पदार्थ के गुणों को समझना
और सामान्य पदार्थ के गुणों को समझे बिना
असंभव है
वैज्ञानिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक उन्नति

आदर्श पदार्थ
हर परिस्थिति में
दिए गए नियमों के अनुसार कार्य करता है
समीकरणों में बँधा रहता है
मगर सामान्य परिस्थियों में
नहीं पाए जाते आदर्श पदार्थ

सामान्य ताप और दाब पर
पाए जाते हैं सामान्य पदार्थ
और इन्हीं से निर्मित होते हैं
पुल, हवाई जहाज, इमारतें, कम्प्यूटर, समाज......
यानि इस धरती पर मौजूद सारी वस्तुएँ
यहाँ तक कि वह ताप और दाब भी
जिस पर आदर्श पदार्थ अस्तित्व में आ सकते हैं
इन्हीं सामान्य पदार्थों से प्राप्त किए जाते हैं

किंतु अक्सर
सामान्य पदार्थों को समझने के लिए
प्रयोग की जाती हैं
आदर्श पदार्थों के लिए बनाई गई समीकरणें
सामान्य पदार्थों के लिए उचित संशोधन लगाए बिना

क्यूँकि संशोधित करने के बाद
प्राप्त समीकरणें को समझना
मुश्किल हो जाता है
और सब में इतना साहस नहीं होता
कि वो इन मुश्किल समीकरणों को समझने की कोशिश करें

मगर जब तक
आम इंसान इन जटिल समीकरणों से
डरते रहेंगे
दूर भागते रहेंगे
आसान समीकरणों और उनके आसान हल की तलाश में
तब तक वो करते रहेंगे आश्चर्य
इस बात पर
कि सामान्य पदार्थ
आदर्शों जैसा व्यवहार क्यों नहीं करते

उन्हें यह छोटी सी बात भी समझ नहीं आएगी
कि जिस ताप और दाब पर
आदर्श पदार्थ अस्तित्व में आ सकते हैं
उसपर संभव ही नहीं होता
जिंदा रह पाना

रविवार, 11 सितंबर 2011

ग़ज़ल : होलोग्राम लगा नकली, कहते सब मैं ही असली

होलोग्राम लगा नकली
कहते सब मैं ही असली

देखी सोने की चिड़िया
कोषों की तबियत मचली

जो कुछ छोड़ा भँवरों ने
उसको खाती है तितली

जिंदा कर देंगे सड़ मत
कह गिद्धों ने लाश छली

मंत्री जी की फ़ाइल से
केवल मँहगाई निकली

कब तक सच मानूँ इसको
“दुर्घटना से देर भली”

अब पानी बदलो ‘सज्जन’
या मर जाएगी मछली

मंगलवार, 6 सितंबर 2011

ग़ज़ल : दे दी अपनी जान किसी ने धान उगाने में

दे दी अपनी जान किसी ने धान उगाने में
मजा नहीं आया तुमको बिरयानी खाने में

पल भर के गुस्से से सारी बात बिगड़ जाती
सदियाँ लग जाती हैं बिगड़ी बात बनाने में

खाओ जी भर लेकिन इसको मत बर्बाद करो
एक लहू की बूँद जली है हर इक दाने में

उनसे नज़रें टकराईं तो जो नुकसान हुआ
आँसू भरता रहता हूँ उसके हरजाने में

अपने हाथों वो देते हैं सुबहो शाम दवा
क्या रक्खा है ‘सज्जन’ अब अच्छा हो जाने में

शनिवार, 3 सितंबर 2011

गिरना

गिरना एक ऐसी प्रक्रिया है
जिसमें वस्तु अपनी विशेष स्थिति के कारण प्राप्त ऊर्जा
जो शायद बरसों की मेहनत के बाद उसे मिली हो
बड़ी तेजी से खो बैठती है

गिरना यदि जल्द रोका न जाय
तो वस्तु के गिरने का वेग उत्तरोत्तर बढ़ता जाता है
और वस्तु को गिरने में रोमांच का अनुभव होने लगता है

गिरने की इस प्रक्रिया को
तरल पदार्थ जैसे खारा पानी नहीं रोक सकता
न ही रोक सकती है कोई इससे कमजोर वस्तु
यह प्रक्रिया तभी रुकती है
जब वस्तु किसी ठोस और मजबूत तल से टकराती है

तब या तो वस्तु टूटकर बिखर जाती है
या विकृत हो जाती है
और गिरने की इस प्रक्रिया में
वस्तु बढ़ा देती है
अपने आसपास के वातावरण की अराजकता

एक न एक दिन
हर वस्तु को गिरना पड़ता है
क्योंकि कोई भी सहारा हर समय साथ नहीं देता

गिरना हमेशा हमेशा के लिए रोका नहीं जा सकता
पर इतना ध्यान रखने की जरूरत है
कि जब कोई वस्तु गिरे
तो इतना नीचे न गिरने पाए
कि उसका वेग अनियंत्रित हो जाए

शनिवार, 27 अगस्त 2011

ग़ज़ल : जो भी मिट गए तेरी आन पर वो सदा रहेंगे यहीं कहीं

आजकल देशप्रेम का माहौल बना हुआ है। तो प्रस्तुत है एक ग़ज़ल देश प्रेम पर।

बह्र : बह्र-ए-कामिल मुसम्मन सालिम
मुतफायलुन मुतफायलुन मुतफायलुन मुतफायलुन
११२१२ ११२१२ ११२१२ ११२१२

जो भी मिट गए तेरी आन पर वो सदा रहेंगे यहीं कहीं
तेरी माटी में वो ही फूल बन के खिला करेंगे यहीं कहीं ॥१॥

ऐ वतन मेरे, नहीं कर सके, कभी काल भी, ये जुदा हमें
मैं मरा तो क्या, मैं जला तो क्या, मेरे अणु मिलेंगे यहीं कहीं ॥२॥

तू ही घोसला, तू ही है शजर, तू चमन मेरा, तू ही आसमाँ
तुझे छोड़ के, जो कभी उड़ा, मेरे पर गिरेंगे यहीं कहीं ॥३॥

कभी धूप ने जो उड़ा दिया मुझे बादलों सा बना के तो
मेरे अंश लौट के आएँगें औ’ बरस पड़ेंगे यहीं कहीं ॥४॥

कोई दोजखों में जला करे कोई जन्नतों में घुटा करे
जो किसान हैं वो अनाज बन के सदा उगेंगे यहीं कहीं॥५॥

शुक्रवार, 19 अगस्त 2011

कविता : आँसू और पसीना

आँसू और पसीना दोनों
पानी हैं नमकीन

लेकिन बदबू
सिर्फ पसीने से आती है

क्योंकि पसीना
बुरे काम में भी रिसता है
किंतु नहीं आँसू

शनिवार, 13 अगस्त 2011

ग़ज़ल : तू गंगा है पावन रहे ये दुआ दूँ

निजी पाप की मैं स्वयं को सजा दूँ
तू गंगा है पावन रहे ये दुआ दूँ

न दिल रेत का है न तू हर्फ़ कोई
जिसे आँसुओं की लहर से मिटा दूँ

बहुत पूछती है ये तेरा पता, पर,
छुपाया जो खुद से, हवा को बता दूँ?

यही इन्तेहाँ थी मुहब्बत की जानम
तुम्हारे लिए ही तुम्हीं को दगा दूँ

बिखेरी है छत पर पर यही सोच बालू
मैं सहरा का इन बादलों को पता दूँ

गुरुवार, 11 अगस्त 2011

नवगीत : आदमी अकेला है

यंत्रों के जंगल में
जिस्मों का मेला है
आदमी अकेला है

चूहों की भगदड़ में
स्वप्न गिरे
हुए चूर
समझौतों से डरकर
भागे आदर्श दूर

खाई की ओर चला
भेड़ों का रेला है

शोर बहा
गली-सड़क
मन की आवाज घुली
यंत्रों से तार जुड़े
रिश्तों की गाँठ खुली

सुंदर तन है सोना
सीरत अब धेला है

मुट्ठी भर तरु
सोचें
कहाँ गया नील गगन
खा लेगा
इनको भी
ईंटों का बढ़ता वन

व्याकुल है
मन-पंछी
कैसी ये बेला है

मंगलवार, 9 अगस्त 2011

प्रथम कविता कोश सम्मान समारोह जयपुर में सफलतापूर्वक संपन्न

प्रथम कविता कोश सम्मान समारोह 07 अगस्त 2011 को जयपुर में जवाहर कला केंद्र के कृष्णायन सभागार में संपन्न हुआ। इसमें दो वरिष्ठ कवियों (बल्ली सिंह चीमा और नरेश सक्सेना) एवं पाँच युवा कवियों (दुष्यन्त, अवनीश सिंह चौहान, श्रद्धा जैन, पूनम तुषामड़ और सिराज फ़ैसल ख़ान) को सम्मानित किया गया। इस आयोजन में वरिष्ठ कवि श्री विजेन्द्र, श्री ऋतुराज, श्री नंद भारद्वाज एवं वरिष्ठ आलोचक प्रो. मोहन श्रोत्रिय भी उपस्थित थे। समारोह में बल्ली सिंह चीमा एवं नरेश सक्सेना का कविता पाठ मुख्य आकर्षण रहे। कविता कोश के प्रमुख योगदानकर्ताओं को भी कविता कोश पदक एवं सम्मानपत्र देकर सम्मानित किया गया।

समारोह में कविता कोश की तरफ से कविता कोश के संस्थापक और प्रशासक ललित कुमार, कविता कोश की प्रशासक प्रतिष्ठा शर्मा, कविता कोश के संपादक अनिल जनविजय कविता कोश की कार्यकारिणी के सदस्य प्रेमचन्द गांधी, धर्मेन्द्र कुमार सिंह, कविता कोश टीम के भूतपूर्व सदस्य कुमार मुकुल एवं कविता कोश में शामिल कवियों में से आदिल रशीद, संकल्प शर्मा, रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु', माया मृग, मीठेश निर्मोही, राघवेन्द्र, हरिराम मीणा, बनज कुमार 'बनज' आदि उपस्थित थे। समारोह में यह घोषणा की गई कि 07 अगस्त 2011 से कविता कोश के संपादक एक वर्ष के लिए कवि प्रेमचन्द गांधी होंगे। भूतपूर्व सम्पादक अनिल जनविजय कविता कोश टीम के सक्रिय सदस्य के रूप में संपादकीय संयोजन का काम देखेंगे।

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कविता कोश सम्मान 2011 की तस्वीरें

प्रथम कविता कोश सम्मान समारोह की विस्तृत रिर्पोट

कविता कोश टीम ने कविता कोश के पाँचवे जन्मदिवस के अवसर पर कविता कोश जयंती समारोह का आयोजन किया। विगत 07 अगस्त 2011 को जयपुर के प्रसिद्ध जवाहर कला केंद्र के कृष्णायन सभागार में यह भव्य समारोह संपन्न हुआ। समारोह के संयोजक और कविता कोश के संपादक श्री प्रेमचंद गाँधी ने उपस्थित कवियों, श्रोताओं और समारोह के सहभागियों का स्वागत करते हुए कहा यह दिन हिंदी कविता के इतिहास की एक बड़ी परिघटना है। पहली बार कविता कोश को इंटरनेट की दुनिया से निकाल कर सार्वजनिक मंच पर प्रस्तुत किया जा रहा है और हमारे इस समारोह में उपस्थित दो-ढाई सौ लोगों में मात्र वे कवि ही उपस्थित नहीं है जो कविता कोश में शामिल हैं बल्कि बहुत से पत्रकार, हिंदी प्रेमी, छात्र, साहित्यकार एवं जनता के अन्य वर्गों के लोग भी उपस्थित हैं।

इसके बाद कविता कोश के संस्थापक और प्रशासक श्री ललित कुमार ने उपस्थित जन समुदाय को कविता कोश के इतिहास और कविता कोश वेबसाइट के उद्देश्यों से परिचित कराया। अपने वक्तव्य में ललित जी ने कविता कोश के विकास में सामुदायिक भावना के महत्व पर बल दिया और बताया कि इस तरह की वेबसाइट का अस्तित्व सिर्फ सामुदायिक प्रयासों से ही संभव है। एक अकेला व्यक्ति इस तरह की वेबसाइट नहीं चला सकता। इसीलिए शुरू में उन्होंने अकेले इस परियोजना को शुरू करने के बावजूद धीरे धीरे अन्य लोगों को कविता कोश से जोड़ा और कविता कोश टीम की स्थापना की। अब यह टीम ही कविता कोश का संचालन करती है।

कविता कोश ने अपनी इस पंच वर्षीय जयंती के अवसर पर दो वरिष्ठ कवियों और पाँच एकदम नए युवा कवियों को सम्मानित करने का निर्णय लिया था। इसलिए ललित जी के वक्तव्य के बाद इन सातों कवियों को सम्मानित किया गया। सम्मानित कवियों की सूची इस प्रकार है।

कविता कोश सम्मान 2011: सम्मानित रचनाकार

कविता कोश सम्मान के अंतर्गत दोनों वरिष्ठ कवियों नरेश सक्सेना एवं बल्ली सिंह चीमा को 11000 रू. नकद, कविता कोश सम्मान पत्र और कविता कोश ट्रॉफ़ी प्रदान की गई। पाँचों युवा कवियों को पाँच हजार रु. नकद, सम्मान पत्र और कविता कोश ट्रॉफ़ी दी गई। शाल ओढ़ाकर इन कवियों का सम्मान करने के लिए मंच पर ये कवि उपस्थित थे।

सम्मान के बाद सभी सम्मानित कवियों ने अपनी कविता का पाठ किया और समारोह में उपस्थित लोगों को कविता कोश के विषय में अपनी भावना से अवगत कराया और यह सुझाव दिए कि कविता कोश का आगे विकास करने के लिए क्या क्या कदम उठाए जाने चाहिए। कवियों का यह सम्बोधन एक विचार गोष्ठी में बदल गया था। कवियों ने चिंता व्यक्त की कि हिंदी भाषा और हिंदी कविता के लिए एक बड़ा खतरा पैदा हो रहा है। अंग्रेजी के बढ़ते प्रभाव के कारण और भारत के हिंदी भाषी क्षेत्र के निवासियों द्वारा हिंदी पर अंग्रेजी को प्रमुखता देने के कारण हिंदी संस्कृति और साहित्य का ह्रास हो रहा है। हिंदी को बाजार की भाषा बना दिया गया है लेकिन उसे ज्ञान और विज्ञान की भाषा के रूप में विकसित करने की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। हिंदी कविता के नाम पर बेहूदा और मजाकिया कविताएँ लिखी, छपवाई और सुनाई जा रही हैं। हिंदी कविता के मंच पर तथाकथित हास्य कवियों का अधिकार हो गया है। कवि नरेश सक्सेना ने कहा कि स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय तक की संपूर्ण शिक्षा का माध्यम हिंदी को बनाया जाना चाहिए और सभी 40;रह के विज्ञान और प्रौद्योगिकी को भी हिंदी में ही पढ़ाया जाना चाहिए अन्यथा आने वाले दस बीस सालों में हिंदी का अस्तित्व खत्म हो सकता है। नरेश सक्सेना जी के अनुसार आज हिंदी की हैसियत घट गई है इसको अब वापस पाना होगा। सिर्फ आग लिख देने से कागज जलते नहीं बल्कि उन्हें जलाना पड़ता है। उन्होंने अपनी कविताओं से भी माहौल को जीवंत बनाया। उन्होंने मुक्त छंद में अपनी कविता पढ़ी।

(१)
जिसके पास चली गई मेरी जमीन
उसके पास मेरी बारिश भी चली गई
(२)
शिशु लोरी के शब्द नहीं
संगीत समझता है
बाद में सीखेगा भाषा
अभी वह अर्थ समझता है

कवि बल्ली सिंह चीमा ने अपने वक्तव्य में कविता कोश के प्रति आभार प्रकट किया कि उन्हें जयपुर आने और नए श्रोताओं से रूबरू होने का अवसर प्रदान किया है। यह सम्मान इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सम्मान किसी सरकारी संस्था या किसी राजनीतिक संगठन द्वारा नहीं दिया जा रहा है बल्कि कविता के प्रेमियों द्वारा कवियों को सम्मानित किया जा रहा है और यह बड़ी बात है। उन्होंने कामना की कि कविता कोश वेबसाइट पर अधिक से अधिक कवियों की ज्यादा से ज्यादा कविताएँ जुड़ें और यह हिंदी की सबसे बड़ी वेबसाइट बन जाए। चीमा जी ने अपनी जो कविता पढ़ी वह इस प्रकार है।

(१)
कुछ लोगों से आँख मिलाकर पछताती है नींद
खौफ़ज़दा सपनों से अक्सर डर जाती है नींद
हमने अच्छे कर्म किए थे शायद इसीलिए
बिन नींद की गोली खाए आ जाती है नींद
(२)
मैं किसान हूँ मेरा हाल क्या मैं तो आसमाँ की दया पे हूँ
कभी मौसमों ने हँसा दिया कभी मौसमों ने रुला दिया
(३)
वो ब्रश नहीं करते
मगर उनके दाँतो पर निर्दोषों का खून नहीं चमकता
वो नाखून नहीं काटते
लेकिन उनके नाखून नहीं नोचते दूसरों का माँस

कवि विजेन्द्र ने इस अवसर पर बोलते हुए कहा कि कविताएँ दॄष्टिहीन (visionless) नहीं होनी चाहिए| देश को सही विकल्प की और बढ़ाने वाली कविता ही सर्वश्रेष्ठ हो सकती है। कविता कोश इस दिशा में महत्वपूर्ण काम कर रहा है। कविता कोश में रचनाओं का चयन बहुत अच्छा है और इसके लिए कविता कोश के संपादक अनिल जनविजय बधाई के पात्र हैं। इसके तुरंत बाद बोलते हुए अनिल जनविजय ने बताया कि अब से कविता कोश के संपादक कवि प्रेमचंद गाँधी होंगे। मैं अपना कार्यभार उन्हें सौंपता हूँ। अनिल जनविजय ने कविता कोश की पूरी टीम के योगदान को सराहा और टीम सदस्य प्रतिष्ठा शर्मा एवं ललित कुमार के समर्पण की प्रशंसा की। इस अवसर पर वरिष्ठ कवि ऋतुराज, नंद भारद्वाज और मोहन श्रोत्रिय ने भी अपने अपने विचार प्रस्तुत किए।