शनिवार, 13 अगस्त 2011

ग़ज़ल : तू गंगा है पावन रहे ये दुआ दूँ

निजी पाप की मैं स्वयं को सजा दूँ
तू गंगा है पावन रहे ये दुआ दूँ

न दिल रेत का है न तू हर्फ़ कोई
जिसे आँसुओं की लहर से मिटा दूँ

बहुत पूछती है ये तेरा पता, पर,
छुपाया जो खुद से, हवा को बता दूँ?

यही इन्तेहाँ थी मुहब्बत की जानम
तुम्हारे लिए ही तुम्हीं को दगा दूँ

बिखेरी है छत पर पर यही सोच बालू
मैं सहरा का इन बादलों को पता दूँ

गुरुवार, 11 अगस्त 2011

नवगीत : आदमी अकेला है

यंत्रों के जंगल में
जिस्मों का मेला है
आदमी अकेला है

चूहों की भगदड़ में
स्वप्न गिरे
हुए चूर
समझौतों से डरकर
भागे आदर्श दूर

खाई की ओर चला
भेड़ों का रेला है

शोर बहा
गली-सड़क
मन की आवाज घुली
यंत्रों से तार जुड़े
रिश्तों की गाँठ खुली

सुंदर तन है सोना
सीरत अब धेला है

मुट्ठी भर तरु
सोचें
कहाँ गया नील गगन
खा लेगा
इनको भी
ईंटों का बढ़ता वन

व्याकुल है
मन-पंछी
कैसी ये बेला है

मंगलवार, 9 अगस्त 2011

प्रथम कविता कोश सम्मान समारोह जयपुर में सफलतापूर्वक संपन्न

प्रथम कविता कोश सम्मान समारोह 07 अगस्त 2011 को जयपुर में जवाहर कला केंद्र के कृष्णायन सभागार में संपन्न हुआ। इसमें दो वरिष्ठ कवियों (बल्ली सिंह चीमा और नरेश सक्सेना) एवं पाँच युवा कवियों (दुष्यन्त, अवनीश सिंह चौहान, श्रद्धा जैन, पूनम तुषामड़ और सिराज फ़ैसल ख़ान) को सम्मानित किया गया। इस आयोजन में वरिष्ठ कवि श्री विजेन्द्र, श्री ऋतुराज, श्री नंद भारद्वाज एवं वरिष्ठ आलोचक प्रो. मोहन श्रोत्रिय भी उपस्थित थे। समारोह में बल्ली सिंह चीमा एवं नरेश सक्सेना का कविता पाठ मुख्य आकर्षण रहे। कविता कोश के प्रमुख योगदानकर्ताओं को भी कविता कोश पदक एवं सम्मानपत्र देकर सम्मानित किया गया।

समारोह में कविता कोश की तरफ से कविता कोश के संस्थापक और प्रशासक ललित कुमार, कविता कोश की प्रशासक प्रतिष्ठा शर्मा, कविता कोश के संपादक अनिल जनविजय कविता कोश की कार्यकारिणी के सदस्य प्रेमचन्द गांधी, धर्मेन्द्र कुमार सिंह, कविता कोश टीम के भूतपूर्व सदस्य कुमार मुकुल एवं कविता कोश में शामिल कवियों में से आदिल रशीद, संकल्प शर्मा, रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु', माया मृग, मीठेश निर्मोही, राघवेन्द्र, हरिराम मीणा, बनज कुमार 'बनज' आदि उपस्थित थे। समारोह में यह घोषणा की गई कि 07 अगस्त 2011 से कविता कोश के संपादक एक वर्ष के लिए कवि प्रेमचन्द गांधी होंगे। भूतपूर्व सम्पादक अनिल जनविजय कविता कोश टीम के सक्रिय सदस्य के रूप में संपादकीय संयोजन का काम देखेंगे।

चित्र:उपस्थितकवि.jpg

कविता कोश सम्मान 2011 की तस्वीरें

प्रथम कविता कोश सम्मान समारोह की विस्तृत रिर्पोट

कविता कोश टीम ने कविता कोश के पाँचवे जन्मदिवस के अवसर पर कविता कोश जयंती समारोह का आयोजन किया। विगत 07 अगस्त 2011 को जयपुर के प्रसिद्ध जवाहर कला केंद्र के कृष्णायन सभागार में यह भव्य समारोह संपन्न हुआ। समारोह के संयोजक और कविता कोश के संपादक श्री प्रेमचंद गाँधी ने उपस्थित कवियों, श्रोताओं और समारोह के सहभागियों का स्वागत करते हुए कहा यह दिन हिंदी कविता के इतिहास की एक बड़ी परिघटना है। पहली बार कविता कोश को इंटरनेट की दुनिया से निकाल कर सार्वजनिक मंच पर प्रस्तुत किया जा रहा है और हमारे इस समारोह में उपस्थित दो-ढाई सौ लोगों में मात्र वे कवि ही उपस्थित नहीं है जो कविता कोश में शामिल हैं बल्कि बहुत से पत्रकार, हिंदी प्रेमी, छात्र, साहित्यकार एवं जनता के अन्य वर्गों के लोग भी उपस्थित हैं।

इसके बाद कविता कोश के संस्थापक और प्रशासक श्री ललित कुमार ने उपस्थित जन समुदाय को कविता कोश के इतिहास और कविता कोश वेबसाइट के उद्देश्यों से परिचित कराया। अपने वक्तव्य में ललित जी ने कविता कोश के विकास में सामुदायिक भावना के महत्व पर बल दिया और बताया कि इस तरह की वेबसाइट का अस्तित्व सिर्फ सामुदायिक प्रयासों से ही संभव है। एक अकेला व्यक्ति इस तरह की वेबसाइट नहीं चला सकता। इसीलिए शुरू में उन्होंने अकेले इस परियोजना को शुरू करने के बावजूद धीरे धीरे अन्य लोगों को कविता कोश से जोड़ा और कविता कोश टीम की स्थापना की। अब यह टीम ही कविता कोश का संचालन करती है।

कविता कोश ने अपनी इस पंच वर्षीय जयंती के अवसर पर दो वरिष्ठ कवियों और पाँच एकदम नए युवा कवियों को सम्मानित करने का निर्णय लिया था। इसलिए ललित जी के वक्तव्य के बाद इन सातों कवियों को सम्मानित किया गया। सम्मानित कवियों की सूची इस प्रकार है।

कविता कोश सम्मान 2011: सम्मानित रचनाकार

कविता कोश सम्मान के अंतर्गत दोनों वरिष्ठ कवियों नरेश सक्सेना एवं बल्ली सिंह चीमा को 11000 रू. नकद, कविता कोश सम्मान पत्र और कविता कोश ट्रॉफ़ी प्रदान की गई। पाँचों युवा कवियों को पाँच हजार रु. नकद, सम्मान पत्र और कविता कोश ट्रॉफ़ी दी गई। शाल ओढ़ाकर इन कवियों का सम्मान करने के लिए मंच पर ये कवि उपस्थित थे।

सम्मान के बाद सभी सम्मानित कवियों ने अपनी कविता का पाठ किया और समारोह में उपस्थित लोगों को कविता कोश के विषय में अपनी भावना से अवगत कराया और यह सुझाव दिए कि कविता कोश का आगे विकास करने के लिए क्या क्या कदम उठाए जाने चाहिए। कवियों का यह सम्बोधन एक विचार गोष्ठी में बदल गया था। कवियों ने चिंता व्यक्त की कि हिंदी भाषा और हिंदी कविता के लिए एक बड़ा खतरा पैदा हो रहा है। अंग्रेजी के बढ़ते प्रभाव के कारण और भारत के हिंदी भाषी क्षेत्र के निवासियों द्वारा हिंदी पर अंग्रेजी को प्रमुखता देने के कारण हिंदी संस्कृति और साहित्य का ह्रास हो रहा है। हिंदी को बाजार की भाषा बना दिया गया है लेकिन उसे ज्ञान और विज्ञान की भाषा के रूप में विकसित करने की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। हिंदी कविता के नाम पर बेहूदा और मजाकिया कविताएँ लिखी, छपवाई और सुनाई जा रही हैं। हिंदी कविता के मंच पर तथाकथित हास्य कवियों का अधिकार हो गया है। कवि नरेश सक्सेना ने कहा कि स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय तक की संपूर्ण शिक्षा का माध्यम हिंदी को बनाया जाना चाहिए और सभी 40;रह के विज्ञान और प्रौद्योगिकी को भी हिंदी में ही पढ़ाया जाना चाहिए अन्यथा आने वाले दस बीस सालों में हिंदी का अस्तित्व खत्म हो सकता है। नरेश सक्सेना जी के अनुसार आज हिंदी की हैसियत घट गई है इसको अब वापस पाना होगा। सिर्फ आग लिख देने से कागज जलते नहीं बल्कि उन्हें जलाना पड़ता है। उन्होंने अपनी कविताओं से भी माहौल को जीवंत बनाया। उन्होंने मुक्त छंद में अपनी कविता पढ़ी।

(१)
जिसके पास चली गई मेरी जमीन
उसके पास मेरी बारिश भी चली गई
(२)
शिशु लोरी के शब्द नहीं
संगीत समझता है
बाद में सीखेगा भाषा
अभी वह अर्थ समझता है

कवि बल्ली सिंह चीमा ने अपने वक्तव्य में कविता कोश के प्रति आभार प्रकट किया कि उन्हें जयपुर आने और नए श्रोताओं से रूबरू होने का अवसर प्रदान किया है। यह सम्मान इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सम्मान किसी सरकारी संस्था या किसी राजनीतिक संगठन द्वारा नहीं दिया जा रहा है बल्कि कविता के प्रेमियों द्वारा कवियों को सम्मानित किया जा रहा है और यह बड़ी बात है। उन्होंने कामना की कि कविता कोश वेबसाइट पर अधिक से अधिक कवियों की ज्यादा से ज्यादा कविताएँ जुड़ें और यह हिंदी की सबसे बड़ी वेबसाइट बन जाए। चीमा जी ने अपनी जो कविता पढ़ी वह इस प्रकार है।

(१)
कुछ लोगों से आँख मिलाकर पछताती है नींद
खौफ़ज़दा सपनों से अक्सर डर जाती है नींद
हमने अच्छे कर्म किए थे शायद इसीलिए
बिन नींद की गोली खाए आ जाती है नींद
(२)
मैं किसान हूँ मेरा हाल क्या मैं तो आसमाँ की दया पे हूँ
कभी मौसमों ने हँसा दिया कभी मौसमों ने रुला दिया
(३)
वो ब्रश नहीं करते
मगर उनके दाँतो पर निर्दोषों का खून नहीं चमकता
वो नाखून नहीं काटते
लेकिन उनके नाखून नहीं नोचते दूसरों का माँस

कवि विजेन्द्र ने इस अवसर पर बोलते हुए कहा कि कविताएँ दॄष्टिहीन (visionless) नहीं होनी चाहिए| देश को सही विकल्प की और बढ़ाने वाली कविता ही सर्वश्रेष्ठ हो सकती है। कविता कोश इस दिशा में महत्वपूर्ण काम कर रहा है। कविता कोश में रचनाओं का चयन बहुत अच्छा है और इसके लिए कविता कोश के संपादक अनिल जनविजय बधाई के पात्र हैं। इसके तुरंत बाद बोलते हुए अनिल जनविजय ने बताया कि अब से कविता कोश के संपादक कवि प्रेमचंद गाँधी होंगे। मैं अपना कार्यभार उन्हें सौंपता हूँ। अनिल जनविजय ने कविता कोश की पूरी टीम के योगदान को सराहा और टीम सदस्य प्रतिष्ठा शर्मा एवं ललित कुमार के समर्पण की प्रशंसा की। इस अवसर पर वरिष्ठ कवि ऋतुराज, नंद भारद्वाज और मोहन श्रोत्रिय ने भी अपने अपने विचार प्रस्तुत किए।

बुधवार, 3 अगस्त 2011

कविता : कृष्ण विवर और तुम

क्या?
कैसी लगती हो तुम मुझे?
बता दूँ?
पर विज्ञान का विद्यार्थी हूँ
तुम हँसने लग जाओगी मेरी उपमा पर
पहले वादा करो हँसोगी नहीं
पक्का वादा?
ठीक है
तो मुझे लगता है तुम कृष्ण विवर जैसी हो
अरे हाँ बाबा ‘ब्लैक होल’
क्यूँ?
क्यूँकि जब भी मैं तुम्हारे पास आता हूँ
ऐसा लगता है तुम मुझसे मेरा अस्तित्व छीनने लग गई हो
जैसे मेरा अस्तित्व तुम्हारे अस्तित्व में घुलने लग गया हो
ठीक वैसा ही अनुभव
जैसा किसी पिण्ड को कृष्ण विवर के पास पहुँचने पर होता है

मेरा शरीर तो शरीर
मेरा मन भी तुम्हारे पास आकर
तुम्हारा ही होकर रह जाता है
चाहकर भी तुम्हें छोड़कर जा नहीं पाता
ठीक वैसे जैसे कृष्ण विवर को छोड़कर द्रव्य तो क्या
प्रकाश की तरंगे भी बाहर नहीं निकल पातीं

जब तुम्हें अपनी बाँहों में लेकर
तुम्हारी आँखों में झाँकता हूँ
तो मुझे लगता है जैसे समय रुक गया हो
ठीक वैसे ही जैसे कृष्ण विवर के पास
उसके घटना क्षितिज के पार जाने पर
समय रुक जाता है
दिक्काल का अस्तित्व समाप्त हो जाता है
और इसके बाद क्या होता है
ये दुनिया का कोई सिद्धांत अब तक नहीं बता पाया

क्या?
हाँ ऐसा हो सकता है
कृष्ण विवर दिक्काल की प्रेयसी हो सकता है
क्यूँकि मेरा जो हाल
तुम्हारा साथ करता है
वही सब कृष्ण विवर के कारण दिक्काल के साथ होता है

सोमवार, 1 अगस्त 2011

कविता : कालजयी प्रेम

अगर हमारे जीवन में ऐसा यंत्र बना
जो मानव शरीर को परमाणुओं में बदलकर
सुदूर स्थानों पर भेज दे

तो तुम्हारी मृत्यु के पश्चात
मैं तुम्हें बाँहों में भरकर
परमाणुओं में बदल जाऊँगा
तुम्हारे हर परमाणु से
मेरा एक परमाणु जुड़ जाएगा
और वह यंत्र हमारे
हर परमाणु जोड़े को
ब्रह्मांड के सुदूर कोनों में भेज देगा

हमारा हर परमाणु जोड़ा
क्वांटम जुड़ाव के द्वारा
काल का अस्तित्व समाप्त होने तक
दूसरे जोड़ों से जुड़ा रहेगा
और इस तरह
हमारा प्रेम
सर्वव्यापी और कालजयी हो जाएगा

बुधवार, 27 जुलाई 2011

कविता : हम तुम और ईश्वर

तब
जब सारे आयाम एक बिंदु मात्र थे
समय भी

तब
जब सृष्टि में केवल और केवल घनीभूत ऊर्जा थी

तब भी
जब इस बिंदु का विस्तार होना शुरू हुआ
और समय ने चलना सीखा

तब भी
जब इस अनंततम सूक्ष्म आयतन में
उपस्थित अनंत अनिश्चितताओं ने
ऊर्जा के गुच्छे बनाने शुरू किए

तब भी
जब इन गुच्छों ने घनीभूत होकर
मूलकण बनाने शुरू किए

तब भी
जब मूलकणों ने मिलकर विभिन्न परमाणु बनाए

तब भी
जब इन परमाणुओं ने गुरुत्वाकर्षण के कारण
इकट्ठा होकर प्रारम्भिक गैसों के बादल बनाने शुरू किए

तब भी
जब गुरुत्व से सिकुड़ने के कारण इन गैसों का तापमान बढ़ा
और तारे बने

तब भी
जब दो तारे पास से गुजरे
और उनके आकर्षण से
कुछ द्रव्य इधर उधर बिखरने से ग्रह बने

तब भी
जब एक ग्रह के ठंढ़े होने पर
हाइड्रोजन और आक्सीजन ने मिलकर पानी बनाया

तब भी
जब इस पानी में जीवन पनपा

तब भी
जब जीवन की जटिलता ने बढ़कर मानव बनाया

तब तक
जब तक तुम्हारे और मेरे माता-पिता धरती पर नहीं आए
हम एक थे
और खोए हुए थे इस महामिलन के महाआनंद में

पर ईश्वर कैसे यह बर्दाश्त करता
कि उसके अलावा किसी और को
परमानंद की प्राप्ति हो

बस हमारे तुम्हारे परमाणु
एक एक करके अलग होने लगे
और बनाने लगे दो अलग अलग मानव शरीर

क्या करूँ?
कैसे समझाऊँ लोगों को?
कि जिसे वो दो अलग अलग शरीर कहते हैं
वो केवल दो अलग अलग गुच्छे हैं परमाणुओं के
और उन गुच्छों का
हर परमाणु चाहता है अपने साथी से जुड़ जाना

सांसारिक संबंधों से
हमारे अरबवें हिस्से के परमाणु भी
शायद ही स्पर्श कर पाएँ
एक दूसरे को

बहुत बड़ी सजा है ये मानव होना
जिससे मरने के बाद भी मुक्ति नहीं मिलती
क्योंकि बच्चों के रूप में हमारे कुछ परमाणु
इंसानी रूप में बचे रह जाते हैं
और दुबारा मिलने के लिए करना पड़ता है
समय द्वारा
एक पूरे वंश को मिटाने का इंतजार

शायद इसीलिए हमारे धर्मग्रंथों में
ईश्वर को दंड देने के लिए
उसे मानव बनने का श्राप दिया गया है

शायद इसीलिए
बढ़ते उन्मुक्त संबंधों के
इस युग में अब तक
ईश्वर की हिम्मत नहीं हुई
मानव बनकर जन्म लेने की

शनिवार, 23 जुलाई 2011

ग़ज़ल : लाश तेरे वादों की मैं न छोड़ पाता हूँ

बह्र : २१२ १२२२ २१२ १२२२

लाश तेरे वादों की मैं न छोड़ पाता हूँ
रोज़ दफ़्न करता हूँ रोज़ खोद लाता हूँ

क्या कमी रहे तुझ बिन ईंट और गारे में
रोज़ घर बनाता हूँ रोज़ ही गिराता हूँ

है तू ही ख़ुदा मेरा तू ही मेरा कातिल है
रोज़ सर झुकाता हूँ रोज़ सर कटाता हूँ

इस नगर में तुझसे ज़्यादा हसीन हैं लाखों
रोज़ याद करता हूँ रोज़ भूल जाता हूँ

दर्द, रंज, तनहाई, अश्क, तंज, रुसवाई
रोज़ मैं कमाता हूँ रोज़ ही उड़ाता हूँ


सोमवार, 18 जुलाई 2011

कविता : खहर

मुझे लगा
वो क्या अहमियत रखता है मेरे लिए
मैं इतना विशाल
और वो
मात्र एक अदना सा शून्य
और मैंने स्वयं को उससे विभाजित कर लिया

परिणाम?
‘खहर’ हो गया हूँ मैं
मुझमें
कुछ भी जोड़ो
कुछ भी घटाओ
कितने से भी गुणा करो
कितने से भी भाग दो
कोई फर्क नहीं पड़ता

अब मैं एक अनिश्चित संख्या हूँ
भटक रहा हूँ
अनंत के आसपास कहीं

बुधवार, 6 जुलाई 2011

ग़ज़ल : मुहब्बत जो गंगा लहर हो गई

मुहब्बत जो गंगा-लहर हो गई
वो काशी की जैसे सहर हो गई

लगा वक्त इतना तुम्हें राह में
दवा आते आते जहर हो गई

लुटी एक चंचल नदी बाँध से
तो वो सीधी सादी नहर हो गई

चला सारा दिन दूसरों के लिए
जरा सा रुका दोपहर हो गई

समंदर के दिल ने सहा जलजला
तटों पर सुनामी कहर हो गई

जमीं एक अल्हड़ चली गाँव से
शहर ने छुआ तो शहर हो गई

तुझे देख जल भुन गई यूँ ग़ज़ल
हिले हर्फ़ सब, बेबहर हो गई

सोमवार, 4 जुलाई 2011

कविता : मुक्त इलेक्ट्रॉन

ज्यादातर पदार्थों के
ज्यादातर इलेक्ट्रान
पहले से ही नियत कक्षाओं में
नाभिक के इर्द गिर्द
घूमते घूमते
अपनी सारी जिंदगी बिता देते हैं

पर कुछ पदार्थों के
कुछ इलेक्ट्रान ऐसे भी होते हैं
जो नाभिक के आकर्षण से हारकर
लकीर का फकीर बनने के बजाय
खोज करते हैं नए रास्तों की
पसंद करते हैं संघर्ष करना
धारा के विरुद्ध बहना
इन्हें कहा जाता है ‘मुक्त इलेक्ट्रॉन’

ऐसे ही इलेक्ट्रान पैदा कर पाते हैं विद्युत ऊर्जा
जो अंधकार को करती है रौशन
जिससे फलती फूलती हैं
नई सभ्यताएँ
और प्रगति करती है मानवता