यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
पृष्ठ
▼
शनिवार, 26 फ़रवरी 2011
बुधवार, 23 फ़रवरी 2011
सोमवार, 31 जनवरी 2011
सोमवार, 24 जनवरी 2011
शुक्रवार, 14 जनवरी 2011
मंगलवार, 11 जनवरी 2011
रविवार, 2 जनवरी 2011
शनिवार, 1 जनवरी 2011
सोमवार, 27 दिसंबर 2010