जिन्हें है जल्दी
(२)
कैसे कहूँ मैं?
(३)
सैकड़ों बच्चे
(४)
तुम हो साथ
(५)
सूर्य के बोल
(६)
अँधेरा घना
(७)
प्रेम की बातें
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
पूछते नहीं,
राज्य की फाइलों से;
उम्र उनकी।
मक्खी गयी थी,
दफ्तर सरकारी;
मरी बेचारी।
खून चूस के,
जोंकें ये सरकारी;
माँस भी खातीं।
वादों का हार,
पहना के नेताजी;
हैं तड़ीपार।
घोंघे की गति,
सरकारी कामों से,
ज्यादा है तेज।
आँसू तुम्हारे,
मेरे लिये बहे क्यों,
पराया हूँ मैं।
नशा हो गया,
जो मैंने पिया प्याला,
आँखो से तेरी।
छू दे प्यार से,
वो पत्थर को इंसा,
करे पल में।
मधुशाला हो,
न हों आँखें तेरी, तो
चढ़ती नहीं।
मधु है, या है
ये, अमृत का प्याला,
या लब तेरे।
बिजली गिरी,
न थी छत भी जहाँ,
उसी के यहाँ।
उँचा पहाड़,
बगल में है देखो,
गहरी खाई।