रविवार, 23 फ़रवरी 2025

लेख: क्या भारत गृहयुद्ध के कगार पर है?

 भारत इस समय एक गंभीर सामाजिक, राजनीतिक और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के दौर से गुजर रहा है। हालाँकि देश अभी पूर्ण रूप से गृहयुद्ध की स्थिति में नहीं है, लेकिन कई संकेतक अंदरूनी संघर्ष और हिंसा की ओर इशारा कर रहे हैं। यदि इन्हें समय रहते नियंत्रित नहीं किया गया, तो भारत एक बड़े सामाजिक टकराव या गृहयुद्ध की चपेट में आ सकता है।

आइए इस स्थिति का गहन विश्लेषण करें और समझें कि इसे रोकने के लिए क्या किया जा सकता है।

1. भारत में गृहयुद्ध की संभावनाएँ: क्या संकेत मिल रहे हैं?

(क) बढ़ता सांप्रदायिक ध्रुवीकरण

  • 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण तेज़ी से बढ़ा है।

  • नागरिकता संशोधन कानून (CAA), लव जिहाद कानून, गोहत्या प्रतिबंध, धारा 370 की समाप्ति जैसी नीतियों ने मुसलमानों को हाशिए पर धकेल दिया है।

  • मॉब लिंचिंग, सांप्रदायिक हिंसा और नफरत भरे भाषणों में इज़ाफा हुआ है।

  • मुसलमानों को देशविरोधी, आतंकवादी, या विदेशी कहकर निशाना बनाया जा रहा है।

खतरा क्यों है?

  • जब कोई बहुसंख्यक समूह (हिंदू) कट्टरपंथ की ओर झुकता है और अल्पसंख्यक समुदाय (मुसलमान) खुद को असुरक्षित महसूस करता है, तो इसका परिणाम लंबे समय तक चलने वाले दंगों या विद्रोह के रूप में हो सकता है।

  • इतिहास बताता है कि इस तरह की धार्मिक ध्रुवीकरण की स्थिति युगांडा, बोस्निया और श्रीलंका जैसे देशों में गंभीर गृहयुद्ध में बदल गई थी

(ख) लोकतंत्र की गिरावट और राजनीतिक अधिनायकवाद

  • भारत की स्वतंत्र संस्थाएँ (न्यायपालिका, चुनाव आयोग, मीडिया) सरकारी दबाव में आ रही हैं।

  • विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी और दमन हो रहा है।

  • लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमले हो रहे हैं—अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध, पत्रकारों की गिरफ्तारी, और विरोध प्रदर्शनों को दबाने की घटनाएँ बढ़ रही हैं।

खतरा क्यों है?

  • जब संस्थाएँ स्वतंत्र रूप से काम नहीं करतीं, तो जनता का लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर भरोसा टूटने लगता है।

  • यदि चुनावों को धांधली वाला या पक्षपाती माना जाता है, तो सड़कों पर संघर्ष और हिंसा का खतरा बढ़ जाता है।

(ग) आर्थिक असमानता और सामाजिक असंतोष

  • बेरोज़गारी दर उच्चतम स्तर पर है, जिससे युवा हताश हो रहे हैं।

  • गरीब और अमीर के बीच की खाई बढ़ रही है—कुछ उद्योगपति पूरी अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण कर रहे हैं।

  • किसान आंदोलन (2020-21) ने दिखाया कि सरकार की नीतियों को लेकर ग्रामीण भारत में गहरा असंतोष है।

  • दलितों, आदिवासियों और पिछड़े वर्गों की उपेक्षा बढ़ रही है।

खतरा क्यों है?

  • आर्थिक और सामाजिक असमानता लंबे समय तक असंतोष को जन्म देती है, जिससे बगावत या हिंसक आंदोलनों की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

  • यदि यह असंतोष सांप्रदायिक तनाव से जुड़ गया, तो स्थिति विस्फोटक हो सकती है।

(घ) क्षेत्रीय और जातीय संघर्षों का बढ़ना

  1. मणिपुर हिंसा (2023-24) – मैतेई और कुकी समुदायों के बीच जातीय संघर्ष।

  2. कश्मीर में असंतोष – धारा 370 हटाने के बाद कश्मीर में अलगाववाद की भावना बढ़ी।

  3. पंजाब में खालिस्तान आंदोलन का पुनरुत्थान – विदेशों में सक्रिय खालिस्तानी समूह भारत में भी उग्रवादी गतिविधियाँ बढ़ा रहे हैं।

  4. नक्सलवाद और पूर्वोत्तर विद्रोह – नागालैंड, असम और अरुणाचल प्रदेश में असंतोष गहराता जा रहा है।

खतरा क्यों है?

  • भारत एक एकीकृत राष्ट्र नहीं बल्कि विभिन्न भाषाओं, संस्कृतियों और जातीय पहचानों का समूह है। यदि केंद्र सरकार अलग-अलग समुदायों को साथ लेकर नहीं चलेगी, तो देश में आंतरिक बिखराव की संभावना बढ़ जाएगी।

2. गृहयुद्ध को रोकने के उपाय

(क) लोकतांत्रिक संस्थाओं को मजबूत करना

न्यायपालिका और मीडिया की स्वतंत्रता सुनिश्चित की जाए।
सीबीआई, ईडी और पुलिस का राजनीतिक उपयोग रोका जाए।
चुनाव प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाया जाए।

(ख) सांप्रदायिक तनाव को कम करना

हेट स्पीच और सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ सख्त कानून लागू हों।
धार्मिक मुद्दों को राजनीति से दूर रखा जाए।
हिंदू-मुस्लिम भाईचारे को मजबूत करने के लिए सामाजिक संवाद को बढ़ावा दिया जाए।

(ग) आर्थिक असमानता को कम करना

रोज़गार सृजन को प्राथमिकता दी जाए।
गरीबों के लिए सरकारी योजनाएँ लागू की जाएँ।
कृषि सुधार और ग्रामीण विकास पर ध्यान दिया जाए।

(घ) क्षेत्रीय और जातीय संघर्षों को शांत करना

पूर्वोत्तर और कश्मीर के नेताओं के साथ सार्थक संवाद किया जाए।
राज्यों को अधिक स्वायत्तता देकर संघीय ढाँचे को मजबूत किया जाए।
मणिपुर और पंजाब जैसे संवेदनशील इलाकों में शांति प्रयास तेज किए जाएँ।

(च) जनता में जागरूकता फैलाना

फेक न्यूज़ और धार्मिक कट्टरता के खिलाफ अभियान चलाया जाए।
संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के लिए नागरिक शिक्षा को बढ़ावा दिया जाए।
नेताओं से जवाबदेही की माँग हो—विकास और रोजगार पर ध्यान दिया जाए, न कि धार्मिक उन्माद पर।

भारत इस समय एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। यदि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण, लोकतांत्रिक गिरावट, आर्थिक असमानता और क्षेत्रीय संघर्षों को समय रहते नहीं रोका गया, तो देश गृहयुद्ध जैसी स्थिति में पहुँच सकता है। लेकिन अगर हम सही कदम उठाएँ, तो भारत को इस संकट से बचाया जा सकता है

अब सवाल यह है कि क्या हमारी सरकार और समाज इस खतरे को गंभीरता से लेंगे?