बह्र: 1222 1222 122
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जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में
वो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी में
दिखाई ही न दें मुफ़्लिस जहां से
न हो इतनी बुलंदी बंदगी में
दुआ करना ग़रीबों का भला हो
भलाई है तुम्हारी भी इसी में
अगर है मोक्ष ही उद्देश्य केवल
नहीं कोई बुराई ख़ुदकुशी में
यही तो इम्तिहान-ए-दोस्ती है
ख़ुशी तेरी भी हो मेरी ख़ुशी में
उतारो या तुम्हें अंधा करेगी
रहोगे कब तलक तुम केंचुली में
जलें पर ख़ूबसूरत तितलियों के
न लाना आँच इतनी टकटकी में
सियासत, साँड, पूँजी और शुहदे
मिलें अब ये ही ग़ालिब की गली में
बहुत बीमार हैं वो लोग जिनको
महज एक जिस्म दिखता षोडशी में
अगरबत्ती हो या सिगरेट दोनों
जगा सकते हैं कैंसर आदमी में
गिरा लेती है चरणों में ख़ुदा को
बड़ी ताकत है ‘सज्जन’ जी मनी में
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।