बह्र: 212 212 212 212
चोर का मित्र जब से बना बादशाह
चोर को चोर कहना हुआ है गुनाह
वो जो संख्या में कम थे वो मारे गए
कुछ गुनहगार थे शेष थे बेगुनाह
आज मुंशिफ के कातिल ने हँसकर कहा
अब मेरा क्या करेंगे सुबूत-ओ-गवाह
खून में उसके सदियों से व्यापार है
बेच देगा वतन वो हटी गर निगाह
एक बंदर से उम्मीद है और क्या
मारता है गुलाटी करो वाह वाह
एक मौका सुनो फिर से दे दो उसे
जो बचा है उसे भी करे वो तबाह