ज़ालिम बढ़ा दे ज़ुल्म ज़रा हर ख़ता के बाद
होता है इंक़िलाब सदा इंतिहा के बाद
किसने बदल दिया है ये कानून देश का
होने लगी है जाँच यहाँ अब सज़ा के बाद
बीमारियों से देश बचा लोगे जान लो
करती असर है ख़ूब दुआ पर दवा के बाद
जिसने भी तप किया उसे देवत्व मिल गया
इंसान कौन-कौन बना देवता के बाद?
ऐसा विकास भी न हमें आप दीजिए
मिलता सभी को जैसे ख़ुदा पर कज़ा के बाद
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
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शनिवार, 16 सितंबर 2023
गुरुवार, 3 अगस्त 2023
नवगीत: धुँआँ उठा है नफ़रत का
पास आ गया है बेहद
जब से चुनाव फिर संसद का
राजनीति की चिमनी जागी
धुँआँ उठा है नफ़रत का
आहिस्ता-आहिस्ता
सारी हवा हो रही है जहरीली
काले-काले धब्बों ने
ढँक ली है नभ की चादर नीली
वोटर बेचारा
मोहरा भर है
पूँजी की हसरत का
धर्म-जाति का शीतल जल अब
धीरे-धीरे फिर गरमाया
बढ़ती रही अगन तो
जल जायेगी मजलूमों की काया
जनता को
अनुमान नहीं है
आने वाली आफ़त का
भगवा हो या हरे रंग का
विष तो आख़िर विष होता है
नागनाथ या साँपनाथ का
मानव ही आमिष होता है
देश अखाड़ा
घर-घर कुश्ती
देख तमाशा ताक़त का
जब से चुनाव फिर संसद का
राजनीति की चिमनी जागी
धुँआँ उठा है नफ़रत का
आहिस्ता-आहिस्ता
सारी हवा हो रही है जहरीली
काले-काले धब्बों ने
ढँक ली है नभ की चादर नीली
वोटर बेचारा
मोहरा भर है
पूँजी की हसरत का
धर्म-जाति का शीतल जल अब
धीरे-धीरे फिर गरमाया
बढ़ती रही अगन तो
जल जायेगी मजलूमों की काया
जनता को
अनुमान नहीं है
आने वाली आफ़त का
भगवा हो या हरे रंग का
विष तो आख़िर विष होता है
नागनाथ या साँपनाथ का
मानव ही आमिष होता है
देश अखाड़ा
घर-घर कुश्ती
देख तमाशा ताक़त का
गुरुवार, 27 अप्रैल 2023
नवगीत: नफ़रत का पौधा
महावृक्ष बनकर लहराता
नफ़रत का पौधा
पत्ते हरे फूल केसरिया
लाल-लाल फल आते
प्यास लहू की लगती जिनको
आकर यहाँ बुझाते
सबसे ज्यादा फल खाने की
चले प्रतिस्पर्द्धा
किसमें हिम्मत इसे काट दे
उठा प्रेम की आरी
इसकी रक्षा में तत्पर है
वानर सेना सारी
कैसे-कैसे काम कराये
निरी अंधश्रद्धा
पंखों वाले बीज हुये हैं
उड़-उड़ कर जायेंगे
भारत के कोने-कोने में
नफ़रत फैलायेंगे
लोग लड़ेंगे
लोग मरेंगे
रोयेगी वसुधा
रोपा इसको राजनीति ने
लेकिन खाद और पानी
वो देते जिनके घर बैठी
रक्तकमल पर लक्ष्मी
जनता मूरख समझ न पाये
यह गोरखधंधा
नफ़रत का पौधा
पत्ते हरे फूल केसरिया
लाल-लाल फल आते
प्यास लहू की लगती जिनको
आकर यहाँ बुझाते
सबसे ज्यादा फल खाने की
चले प्रतिस्पर्द्धा
किसमें हिम्मत इसे काट दे
उठा प्रेम की आरी
इसकी रक्षा में तत्पर है
वानर सेना सारी
कैसे-कैसे काम कराये
निरी अंधश्रद्धा
पंखों वाले बीज हुये हैं
उड़-उड़ कर जायेंगे
भारत के कोने-कोने में
नफ़रत फैलायेंगे
लोग लड़ेंगे
लोग मरेंगे
रोयेगी वसुधा
रोपा इसको राजनीति ने
लेकिन खाद और पानी
वो देते जिनके घर बैठी
रक्तकमल पर लक्ष्मी
जनता मूरख समझ न पाये
यह गोरखधंधा
रविवार, 26 मार्च 2023
ग़ज़ल: कौन बताए बेचारी को पगली तू ख़तरे में है
22 22 22 22 22 22 22 2
कौन बताए बेचारी को पगली तू ख़तरे में है
मालिक निकला चोर उचक्का दुनिया ने मुँह पर थूका
नौकर बोल रहा मेरा सोना बाबू ख़तरे में है
बेच दिया उपवन माली ने कब का अब तो ये लगता
बंधन में हैं फूल और उनकी ख़ुश्बू ख़तरे में है
झेल रहे इस कदर प्रदूषण मिट्टी, पानी और हवा
खतरे में हैं सारे मुस्लिम हर हिन्दू खतरे में है
इनके बिन सारी दुनिया सचमुच नीरस हो जाएगी
भाईचारा, प्यार, वफ़ा इनका जादू ख़तरे में है
बोझ उठाकर पूंजी सत्ता का बेचारा वृद्ध हुआ
मारा जाएगा `सज्जन’ अब तो टट्टू ख़तरे में है
बुधवार, 1 मार्च 2023
बुधवार, 4 जनवरी 2023
नवगीत: जीवन की पतंग
प्यार किसी का बनता जब-जब
लंबी पक्की डोर
जीवन की पतंग छू लेती
तब-तब नभ का छोर
यूँ तो शत्रु बहुत हैं नभ में
इसे काटने को
तिस पर तेज हवा आती है
ध्यान बाँटने को
ऐसे पल में प्रीत जरा सा
देती है झकझोर
डोर कटी तो
अनियंत्रित हो जाने कहाँ गिरेगी
मिल जाएगी कहीं धूल में
या तरु पर लटकेगी
प्रेम डोर बिन
ये बेचारी
है बेहद कमजोर
बने संतुलन, रहे हौसला
तो सब कुछ है मुमकिन
कभी ढील देनी पड़ती तो
सख्ती के भी कुछ दिन
उड़ती बिना प्रयत्न कभी तो
लेती कभी हिलोर