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गुरुवार, 27 अप्रैल 2023

नवगीत: नफ़रत का पौधा

महावृक्ष बनकर लहराता
नफ़रत का पौधा

पत्ते हरे फूल केसरिया
लाल-लाल फल आते
प्यास लहू की लगती जिनको
आकर यहाँ बुझाते

सबसे ज्यादा फल खाने की
चले प्रतिस्पर्द्धा

किसमें हिम्मत इसे काट दे
उठा प्रेम की आरी
इसकी रक्षा में तत्पर है
वानर सेना सारी

कैसे-कैसे काम कराये
निरी अंधश्रद्धा

पंखों वाले बीज हुये हैं
उड़-उड़ कर जायेंगे
भारत के कोने-कोने में
नफ़रत फैलायेंगे

लोग लड़ेंगे
लोग मरेंगे
रोयेगी वसुधा

रोपा इसको राजनीति ने
लेकिन खाद और पानी
वो देते जिनके घर बैठी
रक्तकमल पर लक्ष्मी

जनता मूरख समझ न पाये
यह गोरखधंधा

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