पृष्ठ

बुधवार, 4 जनवरी 2023

नवगीत: जीवन की पतंग


प्यार किसी का बनता जब-जब
लंबी पक्की डोर
जीवन की पतंग छू लेती
तब-तब नभ का छोर

यूँ तो शत्रु बहुत हैं नभ में
इसे काटने को
तिस पर तेज हवा आती है
ध्यान बाँटने को

ऐसे पल में प्रीत जरा सा
देती है झकझोर

डोर कटी तो
अनियंत्रित हो जाने कहाँ गिरेगी
मिल जाएगी कहीं धूल में
या तरु पर लटकेगी

प्रेम डोर बिन
ये बेचारी
है बेहद कमजोर

बने संतुलन, रहे हौसला
तो सब कुछ है मुमकिन
कभी ढील देनी पड़ती तो
सख्ती के भी कुछ दिन

उड़ती बिना प्रयत्न कभी तो
लेती कभी हिलोर