सोमवार, 20 दिसंबर 2021

नवगीत : रजनीगंधा

रजनीगंधा
तुम्हें विदेशी
कहे सियासत

माना पितर तुम्हारे जन्मे
सात समंदर पार
पर तुम जन्मे इस मिट्टी में
यहीं मिला घर-बार

देख रही सब
फिर क्यों करती
हवा शरारत

रंग तुम्हारा रूप तुम्हारा
लगे मोगरे सा
फिर भी तुम्हें स्वदेशी कहती
नहीं कभी पुरवा

साफ हवा में
किसने घोली
इतनी नफ़रत

बन किसान का साथी यूँ ही
खेतों में उगना
गाँव, गली, घर, नगर, डगर सब
महकाते रहना

मिट जाएगी
कर्म इत्र से
बू-ए-तोहमत

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