गुरुवार, 27 मई 2021

घनाक्षरी : जाते-जाते सारा हिन्दुस्तान बेच डालूँगा

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रेल बेच डाली मैंने तेल बेच डाला मैंने,
न्याय बेच डालूँगा ईमान बेच डालूँगा।

धान बेच डाला खलिहान बेच डाला मैंने,
बोलेगा अदानी तो किसान बेच डालूँगा।

बनिया हूँ भाई सही कीमत मिली जो मुझे,
राष्ट्रगान क्या है संविधान बेच डालूँगा।

बहुमत न मिला तो झोला ले के चल दूँगा,
जाते-जाते सारा हिन्दुस्तान बेच डालूँगा।

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