बह्र : ११२१२ ११२१२ ११२१२ ११२१२
किसी रात आ मेरे पास आ मेरे साथ रह मेरे हमसफ़र
तुझे दिल के रथ पे बिठा के मैं कभी ले चलूँ कहीं चाँद पर
तुझे छू सकूँ तो मिले सुकूँ तुझे चूम लूँ तो ख़ुदा मिले
तू जो साथ दे जग जीत लूँ तूझे पी सकूँ तो बनूँ अमर
मेरे हमनशीं मेरे हमनवा मेरे हमक़दम मेरे हमजबाँ
तुझे तुझ से लूँगा उधार, फिर, भरूँ किस्त चाहे मैं उम्र भर
कहीं धूप है कहीं छाँव है कहीं शहर है कहीं गाँव है
है कहाँ चली मेरी रहगुज़र तू जो साथ है तो किसे ख़बर
मेरी भूख तू मेरी प्यास तू मेरा जिस्म तू मेरी जान तू
तेरा नाम ख़ुद का बता रहा तू बसी है मुझमें कुछ इस क़दर
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
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बढ़िया
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंआपने बहुत अच्छी पोस्ट लिखी है. ऐसे ही आप अपनी कलम को चलाते रहे. Ankit Badigar की तरफ से धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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