पृष्ठ

शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2019

नवगीत : जाते हो बाजार पिया तो दलिया ले आना

जाते हो बाजार पिया तो
दलिया ले आना
आलू, प्याज, टमाटर
थोड़ी धनिया ले आना

आग लगी है सब्जी में
फिर भी किसान भूखा
बेच दलालों को सब
खुद खाता रूखा-सूखा

यूँं तो नहीं ज़रूरत हमको
लेकिन फिर भी तुम
बेच रही हो बथुआ कोई बुढ़िया
ले आना

जैसे-जैसे जीवन कठिन हुआ
मजलूमों का
वैसे-वैसे जन्नत का सपना भी
खूब बिका

मन का दर्द न मिट पायेगा
पर तन की ख़ातिर
थोड़ा हरा पुदीना
थोड़ी अँबिया ले आना

धर्म जीतता रहा सदा से
फिर से जीत गया
हारा है इंसान हमेशा
फिर से हार गया

दफ़्तर से थककर आते हो
छोड़ो यह सब तुम
याद रहे तो
इक साबुन की टिकिया ले आना

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

जो मन में आ रहा है कह डालिए।