उसने कहा 2=3 होता है
मैंने कहा आप बिल्कुल गलत कह रहे हैं
उसने लिखा 20-20=30-30
फिर लिखा 2(10-10)=3(10-10)
फिर लिखा 2=3(10-10)/(10-10)
फिर लिखा 2=3
मैंने कहा शून्य बटा शून्य अपरिभाषित है
आपने शून्य बटा शून्य को एक मान लिया है
उसने कहा ईश्वर भी अपरिभाषित है
मगर उसे भी एक माना जाता है
मैंने कहा इस तरह तो आप हर वह बात सिद्ध कर देंगे
जो आपके फायदे की है
उसने कहा यह बात मैं जानता हूँ
तुम जानते हो
मगर जनता यह बात नहीं जानती
और तुम जनता को यह बात समझा नहीं पाओगे
इतना कहकर वह मुस्कुराया
मैं निरुत्तर हो गया।
जनता के लिए तो निल बट्टा सन्नाटा ही रहता है
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!
शुक्रिया आ. कविता जी
हटाएंसटीक रचना
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आ. ओंकार जी
हटाएंआकड़ो की अच्छी तरह रचना धर्मेन्द्र जी, गणित प्रेमियों के लिए एक अच्छी कविता.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
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