एक गाँव में कुछ लोग ऐसे थे जो देख नहीं पाते थे, कुछ ऐसे थे जो सुन नहीं पाते थे, कुछ ऐसे थे जो बोल नहीं पाते थे और कुछ ऐसे भी थे जो चल नहीं पाते थे। उस गाँव में केवल एक ऐसा आदमी था जो देखने, सुनने, बोलने के अलावा दौड़ भी लेता था। एक दिन ग्रामवासियों ने अपना नेता चुनने का निर्णय लिया। ऐसा नेता जो उनकी समस्याओं को जिलाधिकारी तक सही ढंग से पहुँचा कर उनका समाधान करवा सके।
जब चुनाव हुआ तो अंधों ने अंधे को, बहरों ने बहरे को, गूँगों ने गूँगे को और लँगड़ों ने एक लँगड़े को वोट दिया। जो आदमी देख, सुन, बोल और दौड़ सकता था उसे केवल अपना ही वोट मिल सका। गाँव में अंधों की संख्या ज्यादा थी इसलिये एक ऐसा आदमी नेता बन गया जिसे कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता था।
अंधा गाँव के इकलौते देख, सुन, बोल और दौड़ सकने वाले आदमी को लेकर जिलाधिकारी के पास गया और बोला, “हुजूर, माईबाप गाँव के सभी आदमियों एवं जानवरों के गले में घंटी बँधवा दीजिये और सभी वृक्षों और दीवारों में ऐसा सायरन लगवा दीजिये जो किसी के नजदीक आते ही बज उठे। इससे सारे ग्रामवासी बेधड़क सारे गाँव में घूम सकेंगे और अपना-अपना काम आराम से कर सकेंगे।”
जिलाधिकारी का दिमाग भन्ना गया। वह इकलौते देख, सुन, बोल और दौड़ सकने वाले आदमी से बोला, “यह क्या पागलपन है।”
आदमी बोला, “हुजूर यह लोकतंत्र है।”
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
गुरुवार, 5 अप्रैल 2018
शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2018
कविता : शून्य बटा शून्य
उसने कहा 2=3 होता है
मैंने कहा आप बिल्कुल गलत कह रहे हैं
उसने लिखा 20-20=30-30
फिर लिखा 2(10-10)=3(10-10)
फिर लिखा 2=3(10-10)/(10-10)
फिर लिखा 2=3
मैंने कहा शून्य बटा शून्य अपरिभाषित है
आपने शून्य बटा शून्य को एक मान लिया है
उसने कहा ईश्वर भी अपरिभाषित है
मगर उसे भी एक माना जाता है
मैंने कहा इस तरह तो आप हर वह बात सिद्ध कर देंगे
जो आपके फायदे की है
उसने कहा यह बात मैं जानता हूँ
तुम जानते हो
मगर जनता यह बात नहीं जानती
और तुम जनता को यह बात समझा नहीं पाओगे
इतना कहकर वह मुस्कुराया
मैं निरुत्तर हो गया।
मैंने कहा आप बिल्कुल गलत कह रहे हैं
उसने लिखा 20-20=30-30
फिर लिखा 2(10-10)=3(10-10)
फिर लिखा 2=3(10-10)/(10-10)
फिर लिखा 2=3
मैंने कहा शून्य बटा शून्य अपरिभाषित है
आपने शून्य बटा शून्य को एक मान लिया है
उसने कहा ईश्वर भी अपरिभाषित है
मगर उसे भी एक माना जाता है
मैंने कहा इस तरह तो आप हर वह बात सिद्ध कर देंगे
जो आपके फायदे की है
उसने कहा यह बात मैं जानता हूँ
तुम जानते हो
मगर जनता यह बात नहीं जानती
और तुम जनता को यह बात समझा नहीं पाओगे
इतना कहकर वह मुस्कुराया
मैं निरुत्तर हो गया।
सोमवार, 1 जनवरी 2018
ग़ज़ल: कब तक ऐसे राज करेगा तेरी ऐसी की तैसी
कब तक ऐसे राज करेगा तेरी ऐसी की तैसी
तू केवल पूँजी का चमचा तेरी ऐसी की तैसी
पाँच साल होने को हैं अब घर घर जाकर देखेगा
करती है कैसे ये जनता तेरी ऐसी की तैसी
खाता भर भर देने का वादा करने वाले तूने
खा डाला जो खाते में था तेरी ऐसी की तैसी
बापू का नाखून नहीं तू गप्पू भी सबसे घटिया
बनता है बापू के जैसा तेरी ऐसी की तैसी
कई पीढ़ियों तक ये सबको नफ़रत के फल बाँटेगा
तूने रोपा है जो पौधा तेरी ऐसी की तैसी
तू केवल पूँजी का चमचा तेरी ऐसी की तैसी
पाँच साल होने को हैं अब घर घर जाकर देखेगा
करती है कैसे ये जनता तेरी ऐसी की तैसी
खाता भर भर देने का वादा करने वाले तूने
खा डाला जो खाते में था तेरी ऐसी की तैसी
बापू का नाखून नहीं तू गप्पू भी सबसे घटिया
बनता है बापू के जैसा तेरी ऐसी की तैसी
कई पीढ़ियों तक ये सबको नफ़रत के फल बाँटेगा
तूने रोपा है जो पौधा तेरी ऐसी की तैसी
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