बह्र : मफऊलु फायलातुन मफऊलु फायलुन (221 2122 221 212)
है अंग अंग तेरा सौ गीत सौ ग़ज़ल
पढ़ता हूँ कर अँधेरा सौ गीत सौ ग़ज़ल
देखा है तुझको जबसे मेरे मन के आसपास,
डाले हुए हैं डेरा सौ गीत सौ ग़ज़ल।
अलफ़ाज़ तेरा लब छू अश’आर बन रहे,
कर दे बदन ये मेरा सौ गीत सौ ग़ज़ल।
नागिन समझ के जुल्फें लेकर गया, सो अब,
गाता फिरे सपेरा सौ गीत सौ ग़ज़ल।
आया जो तेरे घर तो सब छोड़छाड़ कर,
लेकर गया लुटेरा सौ गीत सौ ग़ज़ल।
बहुत ही प्रेम में पगी ग़ज़ल ... हर शेर लाजवाब ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आदरणीय नासवा जी
हटाएंधर्मेंद्र जी, बहुत प्यार भरी गझल
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आदरणीय पंडित जी
हटाएंइस गझल के हर शब्द से प्यार झलक रहा हैं.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ओंकार जी
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