है यही विनती प्रभो
नव वर्ष ऐसा हो
एक डॉलर के बराबर
एक पैसा हो
ऊसरों में धान हो पैदा
रूपया दे पाव भर मैदा
हर नदी को तू रवानी दे
हर कुआँ तालाब पानी दे
लौट आए गाँव शहरों से
हों न शहरी लोग बहरों से
खूब ढोरों के लिये
चोकर व भूसा हो
कैद हो आतंक का दानव
और सब दानव, बनें मानव
ताप धरती का जरा कम हो
रेत की छाती जरा नम हो
घाव सब ओजोन के भर दो
तेल पर ना युद्ध कोई हो
साल ये भगवन! धरा पर
स्वर्ग जैसा हो
सूर्य पर विस्फोट हों धीरे
भूध्रुवों पर चोट हो धीरे
अब कहीं भूकंप ना आएँ
संलयन हम मंद कर पाएँ
अब न काले द्रव्य उलझाएँ
सब समस्याएँ सुलझ जाएँ
चाहता जो भी हृदय ये
ठीक वैसा हो
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
बढ़िया रचना
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ओंकार जी
हटाएंनववर्ष की ढेर सारी शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंआपको भी नववर्ष की ढेर सारी शुभकामनायें
हटाएंWishing You Happy New Year
जवाब देंहटाएंआपको भी नववर्ष की ढेर सारी शुभकामनायें
हटाएंवाह .. एक डालर के बराबर एक एक रुपया हो जाये ...
जवाब देंहटाएंआमीन ... काश औसा हो जाये ... नव वर्ष मंगलमय हो ...
बहुत बहुत शुक्रिया नासवा जी
हटाएं