बह्र : 2122 1122 1122 22
दिल के जख्मों को चलो ऐसे सम्हाला जाए
इसकी आहों से कोई शे’र निकाला जाए
अब तो ये बात भी संसद ही बताएगी हमें
कौन मस्जिद को चले कौन शिवाला जाए
आजकल हाल बुजुर्गों का हुआ है ऐसा
दिल ये करता है के अब साँप ही पाला जाए
दिल दिवाना है दिवाने की हर इक बात का फिर
क्यूँ जरूरी है कोई अर्थ निकाला जाए
दाल पॉलिश की मिली है तो पकाने के लिए
यही लाजिम है इसे और उबाला जाए
दो विकल्पों से कोई एक चुनो कहते हैं
या अँधेरा भी रहे या तो उजाला जाये
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
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"दिल ये करता है के अब साँप ही पाला जाए" बहुत ही लाजवाब रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया
हटाएंलाजवाब ... आखरी शेर में आज के माहोल को भरपूर लिखा है ...
जवाब देंहटाएंकमाल का शेर है धर्मेन्द्र जी ... बधाई ...
बहुत बहुत धन्यवाद नास्वा जी
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