हमें साथ रहते दस वर्ष बीत गये
दस बड़ी अजीब संख्या है
ये कहती है कि दायीं तरफ बैठा एक
मैं हूँ
तुम शून्य हो
मिलकर भले ही हम एक दूसरे से बहुत अधिक हैं
मगर अकेले तुम अस्तित्वहीन हो
हम ग्यारह वर्ष बाद उत्सव मनाएँगें
क्योंकि अगर कोई जादूगर हमें एक संख्या में बदल दे
तो हम ग्यारह होंगे
दस नहीं
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
ग्यारह की रचना बेहत लाजवाब
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंachcha prayas
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंबहुत ही खुबसूरत
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा लिखा है.
Raksha Bandhan Shayari