बह्र : १२२२ १२२२ १२२
एल ई डी की क़तारें सामने हैं
बचे बस चंद मिट्टी के दिये हैं
दुआ सब ने चराग़ों के लिए की
फले क्यूँ रोशनी के झुनझुने हैं
रखो श्रद्धा न देखो कुछ न पूछो
अँधेरे के ये सारे पैंतरे हैं
अँधेरा दूर होगा तब दिखेगा
सभी बदनाम सच इसमें छुपे हैं
उजाला शुद्ध हो तो श्वेत होगा
वगरना रंग हम पहचानते हैं
करेंगे एक दिन वो भी उजाला
अभी केवल धुआँ जो दे रहे हैं
न अब तमशूल श्री को चुभ सकेगा
उजाले के दरीचे खुल रहे हैं
वाह वाह देवेन्द्र जी .. कमाल की ग़ज़ल को पढने को आनंद ही कुछ और है .. हर शेर लाजवाब है ... अनूठे अंदाज़ की बयानबाजी है ये ग़ज़ल ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय नास्वा जी।
हटाएंbahut sunder ghajhal
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंnice one.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
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