बह्र : २२११ २२११ २२११ २२
क्या क्या न करे देखिए पूँजी मेरे आगे
नाचे है मुई रोज़ ही नंगी मेरे आगे
डरती है कहीं वक़्त ज़ियादा न हो मेरा
भागे है सुई और भी ज़ल्दी मेरे आगे
सब रंग दिखाने लगा जो साफ था पहले
जैसे ही छुआ तेल ने पानी मेरे आगे
ख़ुद को भी बचाना है और उसको भी बचाना
हाथी मेरे पीछे है तो चींटी मेरे आगे
सदियों मैं चला तब ये परम सत्य मिला है
मिट्टी मेरे पीछे थी, है मिट्टी मेरे आगे
बहुत खूब ... गज़ब के शब्दों का संचयन ... लाजवाब ग़ज़ल ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया नास्वा जी
हटाएंवाह ! बहुत बढ़िया कविता ! सार्थक सृजन !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
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