सोमवार, 3 अक्टूबर 2016

ग़ज़ल : मेरे चेहरे पे कितने चेहरे हैं

बह्र : २१२२ १२१२ २२

अंधे बहरे हैं चंद गूँगे हैं
मेरे चेहरे पे कितने चेहरे हैं

मैं कहीं ख़ुद से ही न मिल जाऊँ
ये मुखौटे नहीं हैं पहरे हैं

आइने से मिला तो ये पाया
मेरे मुँह पर कई मुँहासे हैं

फ़ेसबुक पर मुझे लगा ऐसा
आप दुनिया में सबसे अच्छे हैं

अब जमाना इन्हीं का है ‘सज्जन’
क्या हुआ गर ये सिर्फ़ जुमले हैं

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