बह्र : २१२२ २१२२ २१२२ २१२
धूप से लड़ते हुए यदि मर कभी जाता है वो
रात रो देते हैं बच्चे और जी जाता है वो
आपको जो नर्क लगता, स्वर्ग के मालिक, सुनें
बस वहीं पाने को थोड़ी सी खुशी जाता है वो
जिन की रग रग में बहे उसके पसीने का नमक
आज कल देने उन्हीं को खून भी जाता है वो
वो मरे दिनभर दिहाड़ी के लिए, तू ऐश कर
पास रख अपना ख़ुदा ऐ मौलवी, जाता है वो
खौलते कीड़ों की चीखें कर रहीं पागल उसे
बालने सब आज धागे रेशमी, जाता है वो
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ओंकार जी
हटाएंबहुत कमाल के शेरों से सजी ... गहरा अर्थ लिए लाजवाब ग़ज़ल ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया नासवा जी
हटाएंNice Poem. Thanks for share this.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
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