बह्र : २२ २२ २२ २२ सब खाते हैं इक बोता है ऐसा फल अच्छा होता है पूँजीपतियों के पापों को कोई तो छुपकर धोता है इक दुनिया अलग दिखी उसको जिसने भी मारा गोता है हर खेत सुनहरे सपनों का झूठे वादों ने जोता है महसूस करे जो जितना, वो, उतना ही ज़्यादा रोता है मेरे दिल का बच्चा जाकर यादों की छत पर सोता है भक्तों के तर्कों से ‘सज्जन’ सच्चा तो केवल तोता है |
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
मंगलवार, 30 अगस्त 2016
ग़ज़ल : ऐसा फल अच्छा होता है
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BAHUT SUNDER RACHANA
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