किसको पूजूँ
किसको छोड़ूँ
सब में मिट्टी है भारत की
पीली सरसों या घास हरी
झरबेर, धतूरा, नागफनी
गेहूँ, मक्का, शलजम, लीची
है फूलों में, काँटों में भी
सब ईंटें एक इमारत की
भाले, बंदूकें, तलवारें
गर इसमें उगतीं ललकारें
हल बैल उगलती यही जमीं
गाँधी, गौतम भी हुए यहीं
बाकी सब बात शरारत की
इस मिट्टी के ऐसे पुतले
जो इस मिट्टी के नहीं हुए
उनसे मिट्टी वापस ले लो
पर ऐसे सब पर मत डालो
अपनी ये नज़र हिकारत की
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
वाह ... बहुत ही सुंदर और सामयिक नवगीत ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया नासवा जी
हटाएंWe Proud To Be Indian,
जवाब देंहटाएंWishing You A Very Happy Independence Day To All
शुक्रिया
हटाएंThis great post for Indians . We Proud To Be Indian.
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