जल्दी में क्या सीखोगे
सब आहिस्ता सीखोगे
इक पहलू ही गर देखा
तुम बस आधा सीखोगे
सबसे हार रहे हो तुम
सबसे ज़्यादा सीखोगे
सबसे ऊँचा, होता है,
सबसे ठंडा, सीखोगे
सूरज के बेटे हो तुम
सब कुछ काला सीखोगे
सीखोगे जो ख़ुद पढ़कर
सबसे अच्छा सीखोगे
पहले प्यार का पहला ख़त
पुर्ज़ा पुर्ज़ा सीखोगे
ख़ुद को पढ़ लोगे जिस दिन
सारी दुनिया सीखोगे
हाकिम बनते ही ‘सज्जन’
सब कुछ खाना सीखोगे
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ओंकार जी
हटाएंnice, jivan me sab kuch sikhane ka vakt hota hain dhire dhire ham sab kuch sikha jate hain.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जनाब
हटाएंबहुत खूब ... हर शेर सीख देता है ... लाजवाब ग़ज़ल ....
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुती
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