बह्र : २१२ २१२ २१२ २१२
था हरा औ’ भरा साँवला कोयला
हाँ कभी पेड़ था, साँवला कोयला
वक्त से जंग लड़ता रहा रात दिन
इसलिए हो गया साँवला, कोयला
चन्द हीरे चमकते रहें इसलिये
जिन्दगी भर जला साँवला कोयला
खा के ठंडी हवा जेठ भर हम जिये
जल के विद्युत बना साँवला कोयला
हाथ सेंका किये हम सभी ठंड भर
और जलता रहा साँवला कोयला
चंद वर्षों में ये ख़त्म होने को है
ऐसे लूटा गया साँवला कोयला