बह्र : २१२२ १२१२ २२
ये दिमागी बुखार टेढ़ा है
यही सच है कि प्यार टेढ़ा है
स्वाद इसका है लाजवाब मियाँ
क्या हुआ गर अचार टेढ़ा है
जिनकी मुट्ठी हो बंद लालच से
उन्हें लगता है जार टेढ़ा है
खार होता है एकदम सीधा
फूल है मेरा यार, टेढ़ा है
यूकिलिप्टस कहीं न बन जाये
इसलिए ख़ाकसार टेढ़ा है
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ओंकार जी
हटाएंवाह ... बहुत कमाल के शेर निकाले हैं इस छोटी बहर में ....
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया नासवा जी
हटाएं"प्यार" के इस शब्द में ही इसका टेढ़ापन छुपा होता हैं. लेकिन प्यार करने वालों को ये दिखता नहीं.
जवाब देंहटाएंnice poem
Behatarin Kavita.Jivan Ka Sabse Kubsurat Pal Vahi Hota Hain Jab Kisise Pyar Hota Hain.
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