शुक्रवार, 8 अप्रैल 2016

प्रेम (पाँच छोटी कविताएँ)

(१)

जिनमें प्रेम करने की क्षमता नहीं होती
वो नफ़रत करते हैं
बेइंतेहाँ नफ़रत

जिनमें प्रेम करने की बेइंतेहाँ क्षमता होती है
उनके पास नफ़रत करने का समय नहीं होता

जिनमें प्रेम करने की क्षमता नहीं होती
वो अपने पूर्वजों के आखिरी वंशज होते हैं

(२)

तुम्हारी आँखों के कब्जों ने
मेरे मन के दरवाजे को
तुम्हारे प्यार की चौखट से जोड़ दिया है

इस तरह हमने जाति और धर्म की दीवार के
आर पार जाने का रास्ता बना लिया है

हमारे जिस्म इस दरवाजे के दो ताले हैं
हम दोनों के होंठ इन तालों की दो जोड़ी चाबियाँ

इस तरह दोनों तालों की एक एक चाबी हम दोनों के पास है

जब जब दरवाजा खुलता है
दीवाल घड़ी बन्द पड़ जाती है

(३)

मैं तुम्हारी आँख से निकला हुआ आँसू हूँ
मुझे गिरने मत देना

अपनी उँगली की पोर पर लेकर
अपने होंठों से लगा लेना

मैं तुम्हारे जीवन में नमक की कमी नहीं होने दूँगा

(४)

मैं तुम्हारी आँख में ठहरा हुआ आँसू हूँ
मुझे बाहर मत निकलने देना
मैं तुम्हारे दिल को सूखने नहीं दूँगा

प्रेम की फ़सल खारे पानी में ही उगती है

(५)

हँसते समय तुम्हारे गालों में बनने वाला गड्ढा
बिन पानी का समंदर है
जो न तो मुझे डूबोता है
न तैरकर बाहर निकलने देता है

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