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सोमवार, 25 अप्रैल 2016

ग़ज़ल : जो सच बोले उसे विभीषण समझा जाता है

बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २२ २

जब धरती पर रावण राजा बनकर आता है
जो सच बोले उसे विभीषण समझा जाता है

केवल घोटाले करना ही भ्रष्टाचार नहीं
भ्रष्ट बहुत वो भी है जो नफ़रत फैलाता है

कुछ तो बात यकीनन है काग़ज़ की कश्ती में
दरिया छोड़ो इससे सागर तक घबराता है

भूख अन्न की, तन की, मन की फिर भी बुझ जाती
धन की भूख जिसे लगती सबकुछ खा जाता है

करने वाले की छेनी से पर्वत कट जाता
शोर मचाने वाला केवल शोर मचाता है

2 टिप्‍पणियां:

जो मन में आ रहा है कह डालिए।