बह्र : २२१ २१२१ १२२१ २१२
जब जब तुम्हारे पाँव ने रस्ता बदल दिया
हमने तो दिल के शहर का नक्शा बदल दिया
इसकी रगों में बह रही नफ़रत ही बूँद बूँद
देखो किसी ने धर्म का बच्चा बदल दिया
अंतर गरीब अमीर का बढ़ने लगा है क्यूँ
किसने समाजवाद का ढाँचा बदल दिया
ठंडी लगे है धूप जलाती है चाँदनी
देखो हमारे प्यार ने क्या क्या बदल दिया
छींटे लहू के बस उन्हें इतना बदल सके
साहब ने जा के ओट में कपड़ा बदल दिया
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
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wahhhh
जवाब देंहटाएंशुक्रिया संजीव जी
हटाएंवा !! अति सुंदर
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ओंकार जी
हटाएंअंतर गरीब अमीर का बढ़ने लगा है क्यूँ
जवाब देंहटाएंकिसने समाजवाद का ढाँचा बदल दिया ...
वाह ... हर शेर लाजवाब है ... कुछ शेर तो गहरी चोट कर रहे हैं आज के हालात पर ...
बहुत बहुत शुक्रिया नास्वा जी
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