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शुक्रवार, 4 मार्च 2016

जागो साथी समय नहीं है ये सोने का : ग़ज़ल

बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २२

वक्त आ रहा दुःस्वप्नों के सच होने का
जागो साथी समय नहीं है ये सोने का

बेहद मेहनतकश है पूँजी का सेवक अब
जागो वरना वक्त न पाओगे रोने का

मज़लूमों की ख़ातिर लड़े न सत्ता से यदि
अर्थ क्या रहा हम सब के इंसाँ होने का

अपने पापों का प्रायश्चित करते हम सब
ठेका अगर न देते गंगा को धोने का

‘सज्जन’ की मत मानो पढ़ लो भगत सिंह को
वक्त आ गया फिर से बंदूकें बोने का

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