२१२ २१२ २१२ २१२
झूठ मिटता गया देखते देखते
सच नुमायाँ हुआ देखते देखते
तेरी तस्वीर तुझ से भी बेहतर लगी
कैसा जादू हुआ देखते देखते
तार दाँतों में कल तक लगाती थी जो
बन गई अप्सरा देखते देखते
झुर्रियाँ मेरे चेहरे की बढने लगीं
ये मुआँ आईना देखते देखते
वो दिखाने पे आए जो अपनी अदा
हो गया रतजगा देखते देखते
शे’र उनपर हुआ तो मैं माँ बन गया
बन गईं वो पिता देखते देखते
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ओंकार जी
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