ख़त्म करके
रुक गई बहती नदी
ओढ़ कर
कुहरे की चादर
देर तक सोती रही
सूर्य बाबा
उठ सवेरे
हाथ मुँह धो आ गये
जो दिखा उनको
उसी से
चाय माँगे जा रहे
धूप कमरे में घुसी
तो हड़बड़ाकर
उठ गई
गर्म होते
सूर्य बाबा ने
कहा कुछ धूप से
धूप तो
सब जानती थी
गुदगुदा आई उसे
उठ गई
झटपट नहाकर
वो रसोई में घुसी
चाय पीकर
सूर्य बाबा ने कहा
जीती रहो
खाईयाँ
दो पर्वतों के बीच की
सीती रहो
सूर्य बाबा ने
कहा कुछ धूप से
धूप तो
सब जानती थी
गुदगुदा आई उसे
उठ गई
झटपट नहाकर
वो रसोई में घुसी
चाय पीकर
सूर्य बाबा ने कहा
जीती रहो
खाईयाँ
दो पर्वतों के बीच की
सीती रहो
मुस्कुरा चंचल नदी
सबको जगाने चल पड़ी
सबको जगाने चल पड़ी
बहुत सुंदर नवगीत ... सूरज बाबा की जय हो ....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया नास्वा जी
हटाएं'नवगीत : रुक गई बहती नदी' बहुत सुंदर| शुभकामनाये !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ज्ञानी पंडित जी
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