बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २२ २
अच्छी बात वही जिसको मर्जी अपनाती है
बात वही गंदी जो सब पर थोपी जाती है
मज़लूमों का ख़ून गिरा है, दाग न जाते हैं
चद्दर यूँ तो मुई सियासत रोज़ धुलाती है
रोने चिल्लाने की सब आवाज़ें दब जाएँ
ढोल प्रगति का राजनीति इसलिए बजाती है
अच्छी बात वही जिसको मर्जी अपनाती है
बात वही गंदी जो सब पर थोपी जाती है
मज़लूमों का ख़ून गिरा है, दाग न जाते हैं
चद्दर यूँ तो मुई सियासत रोज़ धुलाती है
रोने चिल्लाने की सब आवाज़ें दब जाएँ
ढोल प्रगति का राजनीति इसलिए बजाती है
फंदे से लटके तो राजा कहता है बुजदिल
हक माँगे तो, जनता बद’अमली फैलाती है
सारा ज्ञान मिलाकर भी इक शे’र नहीं होता
सुन, भेजे से नहीं, शाइरी दिल से आती है
शुक्रिया राजेंद्र जी
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंबहुत बढ़िया, शुभकामनाये !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ज्ञानी पंडित जी
हटाएंरोने चिल्लाने की सब आवाज़ें दब जाएँ
जवाब देंहटाएंढोल प्रगति का राजनीति इसलिए बजाती है..
वाह कहां का सच लिखा है इस बेहतरीन ग़ज़ल में ...
शुक्रिया नास्वा जी
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