भावनाएँ साफ पानी से बनती हैं
तर्क पौष्टिक भोजन से
भूखे प्यासे इंसान के पास
न भावनाएँ होती हैं न तर्क
कहते हैं जल ही जीवन है
क्योंकि जीवन भावनाओं से बनता है
तर्क से किताबें बनती हैं
पत्थर भी पानी पीता है
लेकिन पत्थर रोता बहुत कम है
किन्तु जब पत्थर रोता है तो मीठे पानी के सोते फूट पड़ते हैं
प्लास्टिक पानी नहीं पीता
इसलिए प्लास्टिक रो नहीं पाता
हाँ वो ठहाका मारकर हँसता जरूर है
पानी शरीर से कभी अकेला नहीं निकलता
वो अपने साथ नमक भी ले जाता है
मैं पानी बहुत पीता हूँ
इसलिए मेरे शरीर में अक्सर नमक की कमी हो जाती है
नमक अकेला तो खाया नहीं जा सकता
इसलिए मैं काली चाय की चुस्की के साथ
चुटकी भर नमक खाता हूँ
नमक खट्टी और मीठी
दोनों यादों में घुल जाता है
नमक और पानी
भौतिक अवस्था और रासायनिक संरचना के आधार पर
बिल्कुल अलग अलग पदार्थ हैं
दोनों को बनाने वाले परमाणु अलग अलग हैं
फिर भी दोनों एक दूसरे में ऐसे घुल मिल जाते हैं
कि जीभ पर न रखें तो पता ही न चले
कि पानी में नमक घुला है
मिठास पर पलते हैं इंसानियत के दुश्मन
नमकीन पानी नष्ट कर देता है
इंसानियत के दुश्मनों को
ज़्यादा पानी और ज़्यादा नमक
शरीर बाहर निकाल देता है
पर मीठा शरीर के भीतर इकट्ठा होता रहता है
पहले चर्बी बनकर फिर ज़हर बनकर
पहली बार जीवन नमकीन पानी में बना था
इसलिए जीवन अब हमेशा नमकीन पानी से बनता है
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
यथार्थ परक सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अनामिका जी
हटाएंReally these are true facts
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
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