बह्र : २२११ २२११ २२११ २२
ये झूठ है अल्लाह ने इंसान बनाया
सच ये है के आदम ने ही भगवान बनाया
करनी है परश्तिश तो करो उनकी जिन्होंने
जीना यहाँ धरती पे है आसान बनाया
जैसे वो चुनावों में हैं जनता को बनाते
पंडों ने तुम्हें वैसे ही जजमान बनाया
मज़लूम कहीं घोंट न दें रब की ही गर्दन
मुल्ला ने यही सोच के शैतान बनाया
सब आपके हाथों में है ये भ्रम नहीं टूटे
यह सोच के हुक्काम ने मतदान बनाया
हर बार वो नौकर का इलेक्शन ही लड़े पर
हर बार उन्हें आप ने सुल्तान बनाया
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
बुधवार, 23 दिसंबर 2015
बुधवार, 16 दिसंबर 2015
नवगीत : भौंक रहे कुत्ते
हर आने जाने वाले पर
भौंक रहे कुत्ते
निर्बल को दौड़ा लेने में
मज़ा मिले जब, तो
क्यों ये भौंक रहे हैं, इससे
क्या मतलब इनको
अब हल्की सी आहट पर भी
चौंक रहे कुत्ते
हर गाड़ी का पीछा करते
सदा बिना मतलब
कई मिसालें बनीं, न जाने
ये सुधरेंगे कब
राजनीति, गौ की चरबी में
छौंक रहे कुत्ते
गर्मी इनसे सहन न होती
फिर भी ये हरदम
करते हरे भरे पेड़ों से
बातें बहुत गरम
हाँफ-हाँफ नफ़रत की भट्ठी
धौंक रहे कुत्ते
भौंक रहे कुत्ते
निर्बल को दौड़ा लेने में
मज़ा मिले जब, तो
क्यों ये भौंक रहे हैं, इससे
क्या मतलब इनको
अब हल्की सी आहट पर भी
चौंक रहे कुत्ते
हर गाड़ी का पीछा करते
सदा बिना मतलब
कई मिसालें बनीं, न जाने
ये सुधरेंगे कब
राजनीति, गौ की चरबी में
छौंक रहे कुत्ते
गर्मी इनसे सहन न होती
फिर भी ये हरदम
करते हरे भरे पेड़ों से
बातें बहुत गरम
हाँफ-हाँफ नफ़रत की भट्ठी
धौंक रहे कुत्ते
सोमवार, 14 दिसंबर 2015
ग़ज़ल : जिसको ताकत मिल जाती है वही लूटने लगता है
बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २
देख तेरे संसार की हालत सब्र छूटने लगता है
जिसको ताकत मिल जाती है वही लूटने लगता है
सरकारी खाते से फ़ौरन बड़े घड़े आ जाते हैं
मंत्री जी के पापों का जब घड़ा फूटने लगता है
मार्क्सवाद की बातें कर के जो हथियाता है सत्ता
कुर्सी मिलते ही वो फौरन माल कूटने लगता है
जिसे लूटना हो कानूनन मज़लूमों को वो झटपट
ऋण लेकर कंपनी खोलता और लूटने लगता है
देख तेरे संसार की हालत सब्र छूटने लगता है
जिसको ताकत मिल जाती है वही लूटने लगता है
सरकारी खाते से फ़ौरन बड़े घड़े आ जाते हैं
मंत्री जी के पापों का जब घड़ा फूटने लगता है
मार्क्सवाद की बातें कर के जो हथियाता है सत्ता
कुर्सी मिलते ही वो फौरन माल कूटने लगता है
जिसे लूटना हो कानूनन मज़लूमों को वो झटपट
ऋण लेकर कंपनी खोलता और लूटने लगता है
बेघर होते जाते मुफ़लिस, तेरे घर बढ़ते जाते
देख यही तुझ पर मेरा विश्वास टूटने लगता है
देख यही तुझ पर मेरा विश्वास टूटने लगता है
बुधवार, 9 दिसंबर 2015
कविता : जीवन नमकीन पानी से बनता है
भावनाएँ साफ पानी से बनती हैं
तर्क पौष्टिक भोजन से
भूखे प्यासे इंसान के पास
न भावनाएँ होती हैं न तर्क
कहते हैं जल ही जीवन है
क्योंकि जीवन भावनाओं से बनता है
तर्क से किताबें बनती हैं
पत्थर भी पानी पीता है
लेकिन पत्थर रोता बहुत कम है
किन्तु जब पत्थर रोता है तो मीठे पानी के सोते फूट पड़ते हैं
प्लास्टिक पानी नहीं पीता
इसलिए प्लास्टिक रो नहीं पाता
हाँ वो ठहाका मारकर हँसता जरूर है
पानी शरीर से कभी अकेला नहीं निकलता
वो अपने साथ नमक भी ले जाता है
मैं पानी बहुत पीता हूँ
इसलिए मेरे शरीर में अक्सर नमक की कमी हो जाती है
नमक अकेला तो खाया नहीं जा सकता
इसलिए मैं काली चाय की चुस्की के साथ
चुटकी भर नमक खाता हूँ
नमक खट्टी और मीठी
दोनों यादों में घुल जाता है
नमक और पानी
भौतिक अवस्था और रासायनिक संरचना के आधार पर
बिल्कुल अलग अलग पदार्थ हैं
दोनों को बनाने वाले परमाणु अलग अलग हैं
फिर भी दोनों एक दूसरे में ऐसे घुल मिल जाते हैं
कि जीभ पर न रखें तो पता ही न चले
कि पानी में नमक घुला है
मिठास पर पलते हैं इंसानियत के दुश्मन
नमकीन पानी नष्ट कर देता है
इंसानियत के दुश्मनों को
ज़्यादा पानी और ज़्यादा नमक
शरीर बाहर निकाल देता है
पर मीठा शरीर के भीतर इकट्ठा होता रहता है
पहले चर्बी बनकर फिर ज़हर बनकर
पहली बार जीवन नमकीन पानी में बना था
इसलिए जीवन अब हमेशा नमकीन पानी से बनता है
तर्क पौष्टिक भोजन से
भूखे प्यासे इंसान के पास
न भावनाएँ होती हैं न तर्क
कहते हैं जल ही जीवन है
क्योंकि जीवन भावनाओं से बनता है
तर्क से किताबें बनती हैं
पत्थर भी पानी पीता है
लेकिन पत्थर रोता बहुत कम है
किन्तु जब पत्थर रोता है तो मीठे पानी के सोते फूट पड़ते हैं
प्लास्टिक पानी नहीं पीता
इसलिए प्लास्टिक रो नहीं पाता
हाँ वो ठहाका मारकर हँसता जरूर है
पानी शरीर से कभी अकेला नहीं निकलता
वो अपने साथ नमक भी ले जाता है
मैं पानी बहुत पीता हूँ
इसलिए मेरे शरीर में अक्सर नमक की कमी हो जाती है
नमक अकेला तो खाया नहीं जा सकता
इसलिए मैं काली चाय की चुस्की के साथ
चुटकी भर नमक खाता हूँ
नमक खट्टी और मीठी
दोनों यादों में घुल जाता है
नमक और पानी
भौतिक अवस्था और रासायनिक संरचना के आधार पर
बिल्कुल अलग अलग पदार्थ हैं
दोनों को बनाने वाले परमाणु अलग अलग हैं
फिर भी दोनों एक दूसरे में ऐसे घुल मिल जाते हैं
कि जीभ पर न रखें तो पता ही न चले
कि पानी में नमक घुला है
मिठास पर पलते हैं इंसानियत के दुश्मन
नमकीन पानी नष्ट कर देता है
इंसानियत के दुश्मनों को
ज़्यादा पानी और ज़्यादा नमक
शरीर बाहर निकाल देता है
पर मीठा शरीर के भीतर इकट्ठा होता रहता है
पहले चर्बी बनकर फिर ज़हर बनकर
पहली बार जीवन नमकीन पानी में बना था
इसलिए जीवन अब हमेशा नमकीन पानी से बनता है
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