बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २२ २
लहरों के सँग बह जाने के अपने ख़तरे हैं
तट से चिपके रह जाने के अपने ख़तरे हैं
जो आवाज़ उठाएँगे वो कुचले जाएँगे
लेकिन सबकुछ सह जाने के अपने ख़तरे हैं
सबसे आगे हो जो सबसे पहले खेत रहे
सबसे पीछे रह जाने के अपने ख़तरे हैं
रोने पर कमज़ोर समझ लेती है ये दुनिया
आँसू पीकर रह जाने के अपने ख़तरे हैं
धीरे धीरे सबका झूठ खुलेगा, पर ‘सज्जन’
सबकुछ सच-सच कह जाने के अपने ख़तरे हैं
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
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बहोत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
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