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मंगलवार, 10 नवंबर 2015

ग़ज़ल : इक बार मुस्कुरा दो

बह्र : २२१ २१२२ २२१ २१२२

बरसे यहाँ उजाला, इक बार मुस्कुरा दो
दिल रोशनी का प्यासा, इक बार मुस्कुरा दो

बिन स्नेह और बाती, दिल का दिया है खाली
फिर भी ये जल उठेगा, इक बार मुस्कुरा दो

बिजली चमक उठेगी, पल भर को ही सही, पर
मिट जाएगा अँधेरा, इक बार मुस्कुरा दो

लाखों दिये सजे हैं, मन के महानगर में
ये जल उठेंगे जाना, इक बार मुस्कुरा दो

होंठों की आँच से अब, ‘सज्जन’ पिघल रहा है
हो जाएगा तुम्हारा, इक बार मुस्कुरा दो

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