बह्र : १२२२ १२२२ १२२
सनम जब तक तुम्हें देखा नहीं था
मैं पागल था मगर इतना नहीं था
बियर, रम, वोदका, व्हिस्की थे कड़वे
तुम्हारे हुस्न का सोडा नहीं था
हुआ दिल यूँ तुम्हारा क्या बताऊँ
मुआँ जैसे कभी मेरा नहीं था
यकीनन तुम हो मंजिल जिंदगी की
ये दिल यूँ आज तक दौड़ा नहीं था
तुम्हारे हुस्न की जादूगरी थी
कोई मीलों तलक बूढ़ा नहीं था
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 29 सितम्बर 2015को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया यशोदा जी
हटाएंबहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया कविता जी
हटाएंवाह! :)
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंबहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंThanks a lot sir.beautiful poem.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
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