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गुरुवार, 24 सितंबर 2015

ग़ज़ल : जो नकली सामान सजाकर बैठे हैं

बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २

चेहरे पर मुस्कान लगाकर बैठे हैं
जो नकली सामान सजाकर बैठे हैं

कहते हैं वो हर बेघर को घर देंगे
जो कितने संसार जलाकर बैठे हैं

उनकी तो हर बात सियासी होगी ही
यूँ ही सब के साथ बनाकर बैठे हैं?

दम घुटने से रूह मर चुकी है अपनी
मुँह उसका इस कदर दबाकर बैठे हैं

रब क्यूँकर ख़ुश होगा इंसाँ से, उसपर
हम फूलों की लाश चढ़ाकर बैठे हैं

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