बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २
चेहरे पर मुस्कान लगाकर बैठे हैं
जो नकली सामान सजाकर बैठे हैं
कहते हैं वो हर बेघर को घर देंगे
जो कितने संसार जलाकर बैठे हैं
उनकी तो हर बात सियासी होगी ही
यूँ ही सब के साथ बनाकर बैठे हैं?
दम घुटने से रूह मर चुकी है अपनी
मुँह उसका इस कदर दबाकर बैठे हैं
रब क्यूँकर ख़ुश होगा इंसाँ से, उसपर
हम फूलों की लाश चढ़ाकर बैठे हैं
यकीनन ग्रेविटॉन जैसा ही होता है प्रेम का कण। तभी तो ये मोड़ देता है दिक्काल को / कम कर देता है समय की गति / इसे कैद करके नहीं रख पातीं / स्थान और समय की विमाएँ। ये रिसता रहता है एक दुनिया से दूसरी दुनिया में / ले जाता है आकर्षण उन स्थानों तक / जहाँ कवि की कल्पना भी नहीं पहुँच पाती। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी तक नहीं मिला / लेकिन ब्रह्मांड का कण कण इसे महसूस करता है।
सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंवाह ... हर शेर कमाल कर रहा है अपना ... लाजवाब सज्जन जी ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया नास्वा जी
हटाएंWonderful inspring poem.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
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